tag:blogger.com,1999:blog-62951576892574478752024-03-28T20:28:44.230-07:00Satasangi Lane, Deo 824202ASBAbalnews.blogsport.comhttp://www.blogger.com/profile/04877463731116222930noreply@blogger.comBlogger5142125tag:blogger.com,1999:blog-6295157689257447875.post-4154320268936435552024-03-26T18:03:00.000-07:002024-03-26T18:03:26.122-07:00_होली खेल है जाने सांवरिया_*.......<h1 style="text-align: left;"> *🌹रा धा स्व आ मी🌹*</h1><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">*_होली खेल है जाने सांवरिया_*</h3><h3 style="text-align: left;">*_सतगुरु से सर्व–रंग मिलाई_*</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">फागुन मास रँगीला आया। </h3><h3 style="text-align: left;">घर घर बाजे गाजे लाया।। </h3><h3 style="text-align: left;">यह नरदेही फागुन मास। </h3><h3 style="text-align: left;">सुरत सखी आई करन बिलास।। </h3><h3 style="text-align: left;">तुझ को फिर कर फागुन आया। </h3><h3 style="text-align: left;">सम्हल खेलियो हम समझाया।।</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">होली के पावन अवसर पर समस्त सतसंग जगत प्राणी मात्र को अनेकानेक बधाई। </h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">हुजूर रा धा स्व आ मी दयाल समस्त जीवों को स्वार्थ व परमार्थ की तरक्की की दात बख्शे। यहीc प्रार्थना उन दयाल के चरन कमलों में हम सब तुच्छ जीव पेश करते है। </h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">रा धा स्व आ मी दयाल की दया रा धा स्व आ मी सहाय!</h3><p><br /></p><h1 style="text-align: left;">*🙏🏻रा धा स्व आ मी🙏🏻*🌹</h1>ASBAbalnews.blogsport.comhttp://www.blogger.com/profile/04877463731116222930noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6295157689257447875.post-50738644840536679512024-02-25T08:49:00.000-08:002024-02-25T08:49:19.469-08:00बैकुंठ धाम पर भंडारे / डॉ.स्वामी प्यारी कौड़ा के दिन* <p> *🙏🙏🙏🙏🙏</p><p><br /></p><p><br /></p><h1 style="text-align: left;">तेरे सजदे में सर झुका रहे,</h1><h3 style="text-align: left;"> यह आरज़ू अब दिल में है।</h3><h3 style="text-align: left;"> हर हुक्म की तामील करें,</h3><h3 style="text-align: left;"> बस यह तमन्ना अब मन में है।।</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">तेरी आन बान शान निराली है ,</h3><h3 style="text-align: left;">यह नज़ारा हमने देख लिया।</h3><h3 style="text-align: left;">बैकुंठ धाम पर यमुना तीरे,</h3><h3 style="text-align: left;"> तेरा जलवा हमने देख लिया।।</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">रूहानियत का आलम था,</h3><h3 style="text-align: left;">रौनकों का अजब शोर था।</h3><h3 style="text-align: left;">हंसते खिलखिलाते प्रेमियों से,</h3><h3 style="text-align: left;"> मजमा सराबोर था।</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">दाता जी की तशरीफ़ आवरी से,</h3><h3 style="text-align: left;">कण-कण में चेतनता छा गई।</h3><h3 style="text-align: left;">यमुना की लहरें मचलने लगीं,</h3><h3 style="text-align: left;"> हर गुल पर रौनक आ गई।।</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">संगीत की स्वर लहरियों पर,</h3><h3 style="text-align: left;">थिरकती सुपरमैनों की टोलियां।</h3><h3 style="text-align: left;"> दाता दयाल की दया दृष्टि पा</h3><h3 style="text-align: left;"> भर रहीं थीं प्रेम की झोलियां।।</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">दया और मेहर का अजब नज़ारा,</h3><h3 style="text-align: left;"> यमुना के तट पर था।</h3><h3 style="text-align: left;"> सैकड़ो प्रेमियों का प्रेम रंग,</h3><h3 style="text-align: left;"> थिरक रहा यमुना जल पर था।।</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">शहंशाहों के शहंशाह यमुना तट पर विराजमान थे।</h3><h3 style="text-align: left;"> प्रेमियों के झुंड के झुंड उनके चरणों पर कुर्बान थे।।</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">बैकुंठ धाम का अनुपम नज़ारा हम ने यहां देख लिया।</h3><h3 style="text-align: left;"> सोते जगते हर वक्त ऊष्मा पा, निज धाम हमने पा लिया।।</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">स्याही रंग छुड़ाकर दाता ने, रंग दिया मजीठे रंग में।</h3><h3 style="text-align: left;">कल करम से हमें बचा, प्रेम सरन दे बिठा लिया गोद में।।</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">सर पर धरा हाथ दया का, चिंता अब किस बात की।</h3><h3 style="text-align: left;"> प्रेम रंग में जब रंग डाला ,अब फिक्र नहीं दिन-रात की।।</h3><p><br /></p><p><br /></p><h1 style="text-align: left;"> *डॉक्टर स्वामी प्यारी कौड़ा* </h1><h3 style="text-align: left;"> 4/64 विद्युत नगर</h3><h3 style="text-align: left;">दयालबाग,आगरा </h3><h3 style="text-align: left;"> *25 फरवरी 2024</h3>ASBAbalnews.blogsport.comhttp://www.blogger.com/profile/04877463731116222930noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6295157689257447875.post-35545004308750708452024-02-05T19:20:00.000-08:002024-02-05T19:22:40.679-08:00मौन और मुस्कान <h3 style="text-align: left;"> *प्रस्तुति - नवल किशोर प्रसाद / कुसुम सिन्हा </h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">मैं मौमु सेठ के बारे में बहुत तो नहीं जानता, पर इतना तो जानता ही हूँ कि वह पहले से ही सेठ नहीं था। वह तो एक गरीब आदमी था, झन्नु उसका नाम था।</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">झन्नु हमेशा झन्नाया रहता। बिना बात का झगड़ा करना तो उसके स्वभाव में ही था।</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">किसी ने पूछ लिया कि *झन्नु भाई टाईम क्या हुआ होगा?* तो झन्नु झनझना जाता और कहता- *यह घड़ी तेरे बाप ने ले कर दी है? यहाँ टाईम पहले ही खराब चल रहा है, तूं और आ गया मेरा टाईम खाने। भाग यहाँ से।*</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">अब ऐसे आदमी के साथ कौन काम करे? न उसके पास कोई ग्राहक टिकता, न नौकर। यही कारण था कि वो जो भी काम करता था, उसमें उसे नुकसान ही होता था।</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">कहते हैं कि एक संत एक बार झन्नु के पास से गुजरे। वे कभी किसी से कुछ माँगते नहीं थे, पर न मालूम उनके मन में क्या आया, सीधे झन्नु के सामने आ खड़े हुए। बोले- *बेटा! संत को भोजन करा देगा?"*</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">अब झन्नु तो झन्नु ही ठहरा। झन्ना कर बोला- *"मैं खुद भूखे मर रहा हूँ, तूं और आ गया। चल चल अपना काम कर।"*</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">संत मुस्कुराए और बोले- *"मैं तो अपना काम ही कर रहा हूँ, बिल्कुल सही से कर रहा हूँ। तुम ही अपना काम सही से नहीं कर रहे।"*</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">झन्नु झटका खा गया। उसे ऐसे उत्तर की उम्मीद नहीं थी। पूछने लगा- *"क्या मतलब?"*</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">संत उसके पास बैठ गए। बोले- *"बेटा मालूम है तुम्हारा नाम झन्नु क्यों है? क्योंकि झन्नाया रहना और नुकसान उठाना, यही तुम करते आए हो।अगर तुम अपना स्वभाव बदल लो, तो तुम्हारा जीवन बदल सकता है। मेरी बात मानो तो चाहे कुछ भी हो जाए, खुश रहा करो।"*</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">झन्नु बोला- *"महाराज! खुश कैसे रहूँ? मेरा तो नसीब ही खराब है।"*</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">संत बोले- *"खुशनसीब वह नहीं जिसका नसीब अच्छा है, खुशनसीब वह है जो अपने नसीब से खुश है। तुम खुश रहने लगो तो नसीब बदल भी सकता है। तुम नहीं जानते कि कामयाब आदमी खुश रहे न रहे, पर खुश रहने वाला एक ना एक दिन कामयाब जरूर होता है।"*</h3><p><br /></p><p>झन्नु बोला- *"महाराज! दुनिया बड़ी खराब है और मेरा ढंग ही ऐसा है कि मुझसे झूठ बोला नहीं जाता।"*</p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">संत बोले- *"झन्नु! झूठ नहीं बोल सकते पर चुप तो रह सकते हो? तुम दो सूत्र पकड़ लो। मौन और मुस्कान। मुस्कान समस्या का समाधान कर देती है। मौन समस्या का बाध कर देता है। चाहे जो भी हो जाए, तुम चुप रहा करो, और मुस्कुराया करो। फिर देखो क्या होगा?"*</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">*झन्नु को संत की बात जंच गई। और भगवान की कृपा से उसका स्वभाव और भाग्य दोनों बदल गए। फल क्या मिला? समय बदल गया, झन्नु मौन और मुस्कान के सहारे चलते चलते मौमु सेठ बन गया।*</h3><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><h1 style="text-align: left;">*शुभ प्रभात। 🙏🙏🙏</h1><div><br /></div><p>आज का दिन आपके लिए शुभ एवं मंगलकारी हो।*</p><p>❤️🌹💐👌🙏👍</p><p><br /></p><p> </p>ASBAbalnews.blogsport.comhttp://www.blogger.com/profile/04877463731116222930noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6295157689257447875.post-32602507924567353052024-02-02T06:52:00.000-08:002024-02-02T06:52:00.560-08:00रोज़ाना वाकिआत-<p><br /></p><p><br /></p><h1 style="text-align: left;">रा धा/ध: स्व आ मी! </h1><p> </p><h3 style="text-align: left;"> 02-02-24- आज शाम सतसंग में पढ़ा गया बचन-</h3><h3 style="text-align: left;">कल से आगे:-</h3><h3 style="text-align: left;"> (12.1.32 का दूसरा व शेष भाग)-</h3><h3 style="text-align: left;"> रात के सतसंग में ब्रह्मा (बर्मा) के एक सतसंगी ने सवाल किया कि मन कभी तो बडा प्रेम दिखलाता है कभी खुश्क (सूखा) हो जाता है कभी बडा श्रद्धावान हो जाता है कभी मुखालिफत (विरोध) करने लगता है। इसकी क्या वजह है? जवाब दिया गया- इसकी वजह मन की चंचलता व मलिनता है। जब तक किसी के मन के अन्दर दुनिया की चीजों व बातों के लिए मोह मौजूद है उन चीजों के मुतअल्लिक मुआफिक (अनूकूल )या मुखालिफ (प्रतिकूल) सूरतें नमूदार (प्रकट) होने पर उसको उन उतार चढ़ाव की हालतो का जरूर तल्ख (कड़वा) तजरबा सहना पड़ेगा। इस मोह की मलिनता को दूर करो व नीज (और भी) मन को एक ठिकाने पर क़ायम करने की कोशिश करो तो मन की एकरस हालत कायम रह सकेगी। उसने कहा यह तो निहायत (बहुत) मुश्किल काम है। मन न आसानी से चीजो की मोहब्बत छोडेगा और न अपनी चचलता से बाज आवेगा। जवाब दिया गया कि मालिक के चरनों में मोह बढाओ ऐसा करने से ससार का मोह आप से आप छूट जावेगा और प्रेम बस होकर जब मालिक अन्तर में दर्शन देने की कृपा फरमावेगा तो सभी मलिनता एकदम भस्म हो जावेगी। उसने कहा कि मालिक से प्रेम बढाना भी तो आसान काम नहीं है? जवाब दिया गया - बेशक यह भी आसान बात नहीं है। तो फिर बेहतर होगा कि सतगुरु से या किसी प्रेमी जन से मोहब्बत कायम करो। और दुख सुख व नफा नुकसान दोनों की हालतों में उन्हें याद किया करने से भी मन की हालत बहुत कुछ सुधर सकती है।उसने यह जवाब मंजूर किया। </h3><h3 style="text-align: left;">🙏🏻रा धा/ध: स्व आ मी🙏🏻</h3><h3 style="text-align: left;">रोज़ाना वाकिआत-परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज!*</h3><div><br /></div>ASBAbalnews.blogsport.comhttp://www.blogger.com/profile/04877463731116222930noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6295157689257447875.post-16689234183328963382024-01-31T05:06:00.000-08:002024-01-31T05:08:33.481-08:00हनुमान कथाएँ <h3 style="text-align: left;"> *</h3><h1 style="text-align: left;">🌹हनुमानजी की 5 पौराणिक कथाएं🌹</h1><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">प्रस्तुति - कुसुम सिन्हा / नवल किशोर प्रसाद </h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">🕉🙏🚩</h3><h4 style="text-align: left;">https://chat.whatsapp.com/Fosq14bHQeW4UW0oF</h4><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">*⭕वाल्मीकि रामायण के अलावा दुनियाभर की रामायण में हनुमानजी के संबंध में सैंकड़ों कथाओं का वर्णन मिलता है। उनके बचपने से लेकर कलयुग तक तो हजारों कथाएं हमें पढ़ने को मिल जाती हैं। हनुमानजी को कलयुग का संकट मोचन देवता कहा गया है। एकमात्र इन्हीं की भक्ति फलदायी है। आओ जानते हैं कि कौनसी 5 ऐसी पौराणिक कथाएं हैं जो आज भी प्रचलित हैं।*</h3><p> </p><h3 style="text-align: left;">*🚩1. चारों जुग परताप तुम्हारा:-* लंका विजय कर अयोध्या लौटने पर जब श्रीराम उन्हें युद्घ में सहायता देने वाले विभीषण, सुग्रीव, अंगद आदि को कृतज्ञतास्वरूप उपहार देते हैं तो हनुमानजी श्रीराम से याचना करते हैं- *•''यावद् रामकथा वीर चरिष्यति महीतले। तावच्छरीरे वत्स्युन्तु प्राणामम न संशय:।।''*</h3><p> </p><h3 style="text-align: left;">*•अर्थात :-* 'हे वीर श्रीराम! इस पृथ्वी पर जब तक रामकथा प्रचलित रहे, तब तक निस्संदेह मेरे प्राण इस शरीर में बसे रहें।' इस पर श्रीराम उन्हें आशीर्वाद देते हैं- *•'एवमेतत् कपिश्रेष्ठ भविता नात्र संशय:। चरिष्यति कथा यावदेषा लोके च मामिका तावत् ते भविता कीर्ति: शरीरे प्यवस्तथा। लोकाहि यावत्स्थास्यन्ति तावत् स्थास्यन्ति में कथा।'*</h3><p> </p><h3 style="text-align: left;">*•अर्थात् :-* 'हे कपिश्रेष्ठ, ऐसा ही होगा, इसमें संदेह नहीं है। संसार में मेरी कथा जब तक प्रचलित रहेगी, तब तक तुम्हारी कीर्ति अमिट रहेगी और तुम्हारे शरीर में प्राण भी रहेंगे ही। जब तक ये लोक बने रहेंगे, तब तक मेरी कथाएं भी स्थिर रहेंगी।' चारों जुग परताप तुम्हारा, है परसिद्ध जगत उजियारा।।</h3><p> </p><h3 style="text-align: left;">*🚩2. दो बार उठाया था संजीवनी पर्वत:-* एक बार बचपन में ही हनुमानजी समुद्र में से संजीवनी पर्वत को देवगुरु बृहस्पति के कहने से अपने पिता के लिए उठा लाते हैं। यह देखकर उनकी माता बहुत ही भावुक हो जाती है। इसके बाद राम-रावण युद्ध के दौरान जब रावण के पुत्र मेघनाद ने शक्तिबाण का प्रयोग किया तो लक्ष्मण सहित कई वानर मूर्छित हो गए थे। जामवंत के कहने पर हनुमानजी संजीवनी बूटी लेने द्रोणाचल पर्वत की ओर गए। जब उनको बूटी की पहचान नहीं हुई, तब उन्होंने पर्वत के एक भाग को उठाया और वापस लौटने लगे। रास्ते में उनको कालनेमि राक्षस ने रोक लिया और युद्ध के लिए ललकारने लगा। कालनेमि राक्षस रावण का अनुचर था। रावण के कहने पर ही कालनेमि हनुमानजी का रास्ता रोकने गया था। लेकिन रामभक्त हनुमान उसके छल को जान गए और उन्होंने तत्काल उसका वध कर दिया।</h3><p> </p><h3 style="text-align: left;">*🚩3. विभीषण और राम को मिलाना:-* जब हनुमानजी सीता माता को ढूंढते-ढूंढते विभीषण के महल में चले जाते हैं। विभीषण के महल पर वे राम का चिह्न अंकित देखकर प्रसन्न हो जाते हैं। वहां उनकी मुलाकात विभीषण से होती है। विभीषण उनसे उनका परिचय पूछते हैं और वे खुद को रघुनाथ का भक्त बताते हैं। हनुमान और विभीषण का लंबा संवाद होता है और हनुमानजी जान जाते हैं कि यह काम का व्यक्ति है।</h3><p> </p><h3 style="text-align: left;">इसके बाद जिस समय श्रीराम लंका पर चढ़ाई करने की तैयारी कर रहे होते हैं उस दौरान विभीषण का रावण से विवाद चल रहा होता है अंत में विभीषण महल को छोड़कर राम से मिलने को आतुर होकर समुद्र के इस पार आ जाते हैं। वानरों ने विभीषण को आते देखा तो उन्होंने जाना कि शत्रु का कोई खास दूत है। कोई भी विभीषण पर विश्वास नहीं करता है।</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">सुग्रीव कहते हैं- 'हे रघुनाथजी! सुनिए, रावण का भाई मिलने आया है।' प्रभु कहते हैं- 'हे मित्र! तुम क्या समझते हो?' वानरराज सुग्रीव ने कहा- 'हे नाथ! राक्षसों की माया जानी नहीं जाती। यह इच्छानुसार रूप बदलने वाला न जाने किस कारण आया है।' ऐसे में हनुमानजी सभी को दिलासा देते हैं और राम भी कहते हैं कि मेरा प्रण है कि शरणागत के भय को हर लेना चाहिए। इस तरह हनुमानजी के कारण ही श्रीराम-विभीषण का मिलन सुनिश्चित हो पाया।</h3><p> </p><h3 style="text-align: left;">*🚩4. सबसे पहले लिखी रामायण:-* शास्त्रों के अनुसार विद्वान लोग कहते हैं कि सर्वप्रथम रामकथा हनुमानजी ने लिखी थी और वह भी एक शिला (चट्टान) पर अपने नाखूनों से लिखी थी। यह रामकथा वाल्मीकिजी की रामायण से भी पहले लिखी गई थी और यह *•'हनुमद रामायण'* के नाम से प्रसिद्ध है। यह घटना तब की है जबकि भगवान श्रीराम रावण पर विजय प्राप्त करने के बाद अयोध्या में राज करने लगते हैं और श्री हनुमानजी हिमालय पर चले जाते हैं। वहां वे अपनी शिव तपस्या के दौरान की एक शिला पर प्रतिदिन अपने नाखून से रामायण की कथा लिखते थे। इस तरह उन्होंने प्रभु श्रीराम की महिमा का उल्लेख करते हुए *•'हनुमद रामायण'* की रचना की।</h3><p> </p><h3 style="text-align: left;">कुछ समय बाद महर्षि वाल्मीकि ने भी *•'वाल्मीकि रामायण'* लिखी और लिखने के बाद उनके मन में इसे भगवान शंकर को दिखाकर उनको समर्पित करने की इच्छा हुई। वे अपनी रामायण लेकर शिव के धाम कैलाश पर्वत पहुंच गए। वहां उन्होंने हनुमानजी को और उनके द्वारा लिखी गई *•'हनुमद रामायण'* को देखा। हनुमद रामायण के दर्शन कर वाल्मीकिजी निराश हो गए।</h3><p> </p><h3 style="text-align: left;">वाल्मीकिजी को निराश देखकर हनुमानजी ने उनसे उनकी निराशा का कारण पूछा तो महर्षि बोले कि उन्होंने बड़े ही कठिन परिश्रम के बाद रामायण लिखी थी लेकिन आपकी रामायण देखकर लगता है कि अब मेरी रामायण उपेक्षित हो जाएगी, क्योंकि आपने जो लिखा है उसके समक्ष मेरी रामायण तो कुछ भी नहीं है। तब वाल्मीकिजी की चिंता का शमन करते हुए श्री हनुमानजी ने हनुमद रामायण पर्वत शिला को एक कंधे पर उठाया और दूसरे कंधे पर महर्षि वाल्मीकि को बिठाकर समुद्र के पास गए और स्वयं द्वारा की गई रचना को श्रीराम को समर्पित करते हुए समुद्र में समा दिया। तभी से हनुमान द्वारा रची गई हनुमद रामायण उपलब्ध नहीं है। वह आज भी समुद्र में पड़ी है।</h3><p> </p><h3 style="text-align: left;">*🚩5. हनुमान और अर्जुन:-* आनंद रामायण में वर्णन है कि अर्जुन के रथ पर हनुमान के विराजित होने के पीछे भी कारण है। एक बार किसी रामेश्वरम तीर्थ में अर्जुन का हनुमानजी से मिलन हो जाता है। इस पहली मुलाकात में हनुमानजी से अर्जुन ने कहा- 'अरे राम और रावण के युद्घ के समय तो आप थे?'</h3><div><br /></div><p><br /></p><p>📢📣🔔 </p>ASBAbalnews.blogsport.comhttp://www.blogger.com/profile/04877463731116222930noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6295157689257447875.post-71456336249020533552024-01-29T21:58:00.000-08:002024-01-29T22:01:39.624-08:00श्री राम जन्मभूमि मंदिर का विश्व को संदेश / साध्वी प्रज्ञा भारती <p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p>❤️🙏🙏🙏🌹</p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">22 जनवरी 2024 आधुनिक भारत के इतिहास की एक महत्वपूर्ण तिथि बन गई है| उस दिन अयोध्या धाम में राम जन्म भूमि मंदिर में रामलला विराजमान होने से विश्वभर का ध्यान भारत के गौरवशाली अतीत की ओर चला गया था| पूरा देश राम माय हो गया था| क्योंकि राम भारतीय संस्कृति के केंद्र में समाए हुए हैं| श्री राम का जियाव्न विश्वभर को यह प्रेरणा देता रहा है कि हम अपने जियाव्न को श्रेष्ठ, मर्यादापूर्ण, अनुशासित और कल्याणकारी कैसे बना सकते हैं| श्री राम का जीवन यह भी सिखाता है कि अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियों में किस प्रकार से धैर्य रखा जा सकता है| सत्य, मर्यादा, करुणा और समाज के हर व्यक्ति के प्रति सम्मान उन्हें सबका बना देता है| वह राजा सुग्रीव, राजकुमार विभीषण, महाबली हनुमान, ऋषि मुनियों, अहिल्या शबरी, केवट, जटायु, भालुओं, वानरों के तो हैं ही तथा अवध कि जनता के भी अपने हैं| उनका व्यवहार यह भी सिखाता है कि क्रोध को विनम्रता से कैसे जीता जा सकता है| विवेक, विनय और वीरता ने अयोध्या के राजा राम को लोकनायक राम बना दिया है| </h3><h3 style="text-align: left;">राम ने अयोध्या से श्रीलंका तक यात्रा करके समूचे भारत को एक सूत्र में बांध दिया| आस्थावान लोगों का मानना है कि उन्हें दैवीय शक्तियाँ प्राप्त थीं लेकिन उन्होने हर काम को आम आदमी की भांति पूरा किया| अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि मंदिर हर व्यक्ति को उनकी अद्भुत संगठन क्षमता की याद दिलाएगा| अयोध्या से जाते समय श्री राम केवल अपनी पत्नी और छोटे भाई के साथ वन गए थे लेकिन चौदह वर्ष बाद वह, मनुष्यों, वानरों और भालुओं की विशाल सेना लेकर लौटे थे| श्री राम जन्मभूमि मंदिर पूरे विश्व को अन्याय के खिलाफ लड़ने की प्रेरणा देगा| भव्य मंदिर हर व्यक्ति को यह प्रेरणा देगा कि हमें कैसा व्यवहार करना है और कैसा नहीं! यह वास्तुकला का अनूठा नमूना हमें मित्र कैसा होना चाहिए, इसकी सीख भी देगा| श्री राम द्वारा निषादराज, सुग्रीव और विभीषण के प्रति दिखाए गए सम्मान की याद यह मंदिर सदा दिलाएगा कि जिससे भी मैत्री की, उसे पूरे दिल से निभाई| यह मंदिर यह भी प्रेरणा देगा कि श्री राम अपने वचन के कितने पक्के थे| यह मंदिर त्याग, प्रेम, समर्पण और निष्ठाजैसी भावनाओं का महत्व सदियों तक बताता रहेगा| श्री राम का शासन धर्म और सत्य पर आधारित था, इसलिए आज भी आदर्श माना जाता है| यह मंदिर विश्व के शासकों को रामराज की याद दिलाता रहेगा|</h3><h3 style="text-align: left;"><br /></h3><h3 style="text-align: left;">जयश्री राम !!</h3><div>🙏🙏🙏🙏🙏</div>ASBAbalnews.blogsport.comhttp://www.blogger.com/profile/04877463731116222930noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6295157689257447875.post-34324368284737083622024-01-27T08:51:00.000-08:002024-01-27T08:55:57.704-08:00रा धा ध : स्व आ मी अर्थ <h1 style="text-align: left;"><br /></h1><h1 style="text-align: left;"> *रा धा/ध: स्व आ मी! </h1><h3 style="text-align: left;">प्रस्तुति,- उषा रानी / राजेंद्र प्रसाद सिन्हा</h3><div><br /></div><h3 style="text-align: left;"> </h3><h3 style="text-align: left;"> 27-01-24- आज शाम सतसंग में पढ़ा गया बचन- कल से आगे: (9.रानी 1रानी .32- सनीचर)- आर्य समाजी भाई अक्सर यह कटाक्ष करते हैं कि रा धा/ध: स्व आ मी मत में शब्द की बड़ी महिमा है हालांकि (यद्धपि ) शब्द आकाश का गुन है और बहगान है। आज इतिफाक स्व(संयोग) से वैशेषिक दर्शन हाथ लग गया। उसमे और ही कुछ देखा। उसमे शब्द को आकाश का गुन जरूर बतलाया है लेकिन यह भी फरमाया है कि "कान से ग्रहन किया जाना जो अर्थ है बह शब्द है"।</h3><h3 style="text-align: left;"> यानी जो शब्द आकाश का गुन है वह यह शब्द है जो कान से सुना जाता है (2-2-21)। और रा धा/ध: स्व आ मी मत में जिस शब्द का अभ्यास किया जाता है वह मनुष्य की अवन इन्द्री का विषय नहीं है। यह शब्द चेतन शक्ति का इजहार (प्रकटन) है। यानी जब चेतन शक्ति गुप्त या अव्यक्त अवस्था से प्रकट रूप में आती है तो सुरत की श्रवन शक्ति से उसका अनुभव करने पर जो ज्ञान प्राप्त होता है उसी को शब्द कहते हैं। या यूँ कहो कि वैशेषिक दर्शन में जिस शब्द का जिक्र है वह स्थूल आकाश का गुन है लेकिन रा धा/ध: स्व आ मी मत में जिस चेतन या सार शब्द का उपदेश है वह परम आकाश या चेतन आकाश का गुन है।</h3><h3 style="text-align: left;">चुनांचे (अंत:) उपनिषदों में ब्रह्म को कई जगह परम आकाश (परमे व्योमन) अल्फाज (शब्दों) से बयान किया है। और भूत आकाश को नाशमान कहा है मगर परम आकाश को नाशमान नहीं बतलाया गया। तफ़सील (स्पष्टता ) के लिए वेदान्त सूत्र के पहले अध्याय के दूसरे पाद के सूत्र नम्बर 22 की व्याख्या मुलाहजा (अवलोकित ) हो।</h3><h3 style="text-align: left;"><br /></h3><h3 style="text-align: left;"> इस बयान से साफ़ जाहिर है कि इन भाइयों का कटाक्ष महज गलतफ़हमी (भ्रामक) की बुनियाद (आधार) पर कायम है। </h3><h3 style="text-align: left;">🙏🏻रा धा/ध: स्व आ मी🙏🏻 रोजाना वाकिआत- परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज!*</h3><div><br /></div>ASBAbalnews.blogsport.comhttp://www.blogger.com/profile/04877463731116222930noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6295157689257447875.post-83943796557202233302024-01-26T20:22:00.000-08:002024-01-26T20:22:29.109-08:00संत की वाणी*/ <h3 style="text-align: left;"><br /></h3><h3 style="text-align: left;">*प्रस्तुति - उषा रानी सिन्हा / राजेंद्र प्रसाद </h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">किसी नगर में एक बूढ़ा चोर रहता था। सोलह वर्षीय उसका एक लड़का भी था। चोर जब ज्यादा बूढ़ा हो गया तो अपने बेटे को चोरी की विद्या सिखाने लगा। कुछ ही दिनों में वह लड़का चोरी विद्या में प्रवीण हो गया । दोनों बाप बेटा आराम से जीवन व्यतीत करने लगे।</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">एक दिन चोर ने अपने बेटे से कहा -- *”देखो बेटा, साधु-संतों की बात कभी नहीं सुननी चाहिए। अगर कहीं कोई महात्मा उपदेश देता हो तो अपने कानों में उंगली डालकर वहां से भाग जाना, समझे ।*</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">*”हां बापू, समझ गया ।“* </h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">एक दिन लड़के ने सोचा, क्यों न आज राजा के घर पर ही हाथ साफ कर दूं। ऐसा सोचकर उधर ही चल पड़ा। थोड़ी दूर जाने के बाद उसने देखा कि रास्ते में बगल में कुछ लोग एकत्र होकर खड़े हैं। उसने एक आते हुए व्यक्ति से पूछा, -- *”उस स्थान पर इतने लोग क्यों एकत्र हुए हैं ?“*</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">उस आदमी ने उत्तर दिया -- *”वहां एक महात्मा उपदेश दे रहे हैं।*</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">यह सुनकर उसका माथा ठनका। ‘इसका उपदेश नहीं सुनूंगा ऐसा सोचकर अपने कानों में उंगली डालकर वह वहां से भाग निकला।</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">जैसे ही वह भीड़ के निकट पहुंचा एक पत्थर से ठोकर लगी और वह गिर गया। उस समय महात्मा जी कह रहे थे, *”कभी झूठ नहीं बोलना चाहिए। जिसका नमक खाएं उसका कभी बुरा नहीं सोचना चाहिए। ऐसा करने वाले को भगवान सदा सुखी बनाए रखते हैं।“*</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">ये दो बातें उसके कान में पड़ीं। वह झटपट उठा और कान बंद कर राजा के महल की ओर चल दिया। वहां पहुंचकर जैसे ही अंदर जाना चाहा कि उसे वहां बैठे पहरेदार ने टोका, -- *”अरे कहां जाते हो? तुम कौन हो?“*</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">उसे महात्मा का उपदेश याद आया, ‘झूठ नहीं बोलना चाहिए।’ चोर ने सोचा, आज सच ही बोल कर देखें। उसने उत्तर दिया -- *”मैं चोर हूं, चोरी करने जा रहा हूं!“*</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">*”अच्छा जाओ।“* उसने सोचा राजमहल का नौकर होगा। मजाक कर रहा है। </h3><p><br /></p><h4 style="text-align: left;">चोर सच बोलकर राजमहल में प्रवेश कर गया। एक कमरे में घुसा। वहां ढेर सारा पैसा तथा जेवर देख उसका मन खुशी से भर गया।</h4><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">एक थैले में सब धन भर लिया और दूसरे कमरे में घुसा। वहां रसोई घर था। अनेक प्रकार का भोजन वहां रखा था। वह खाना खाने लगा।</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">खाना खाने के बाद वह थैला उठाकर चलने लगा कि तभी फिर महात्मा का उपदेश याद आया, *‘जिसका नमक खाओ, उसका बुरा मत सोचो।’*</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">उसने अपने मन में कहा, *‘खाना खाया उसमें नमक भी था। इसका बुरा नहीं सोचना चाहिए।’*</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">इतना सोचकर, थैला वहीं रख वह वापस चल पड़ा।</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">पहरेदार ने फिर पूछा -- *”क्या हुआ, चोरी क्यों नहीं की?“*</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">*"देखिए जिसका नमक खाया है, उसका बुरा नहीं सोचना चाहिए। मैंने राजा का नमक खाया है, इसलिए चोरी का माल नहीं लाया। वहीं रसोई घर में छोड़ आया!“* इतना कहकर वह वहां से चल पड़ा ।</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">उधर रसोइए ने शोर मचाया -- *”पकड़ो, पकड़ों चोर भागा जा रहा है ।“* </h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">पहरेदार ने चोर को पकड़कर दरबार में उपस्थित किया।</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">राजा के पूछने पर उसने बताया कि *एक महात्मा के द्धारा दिए गए उपदेश के मुताबिक मैंने पहरेदार के पूछने पर अपने को चोर बताया क्योंकि मैं चोरी करने आया था।"*</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">*"आपका धन चुराया लेकिन आपका खाना भी खाया, जिसमें नमक मिला था। इसीलिए आपके प्रति बुरा व्यवहार नहीं किया और धन छोड़कर भागा।* </h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">उसके उत्तर पर राजा बहुत खुश हुआ और उसे अपने दरबार में नौकरी दे दी ।</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">वह दो-चार दिन घर नहीं गया तो उसके बाप को चिंता हुई कि बेटा पकड़ लिया गया- लेकिन चार दिन के बाद लड़का आया तो बाप अचंभित रह गया अपने बेटे को अच्छे वस्त्रों में देखकर ।</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">लड़का बोला -- *”बापू जी, आप तो कहते थे कि किसी साधु संत की बात मत सुनो! लेकिन मैंने एक महात्मा के दो शब्द सुने और उसी के मुताबिक काम किया तो देखिए सच्चाई का फल ।"*</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">*सच्चे संत की वाणी में अमृत बरसता है, आवश्यकता आचरण में उतारने की है।*</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">*शुभ प्रभात। आज का दिन आप के लिए शुभ एवं मंगलकारी हो।*</h3>ASBAbalnews.blogsport.comhttp://www.blogger.com/profile/04877463731116222930noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6295157689257447875.post-30298851196474542152024-01-23T23:54:00.000-08:002024-01-23T23:54:51.679-08:00मानत नहीं मन मोरा साधो <p> 🙏🙏🙏🙏🙏</p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">मानत नहीं मन मोरा साधो |</h3><h3 style="text-align: left;">मानत नहीं मन मोरा </h3><h3 style="text-align: left;">रे || टेक||</h3><h3 style="text-align: left;">बार बार मै मन समझाउं, </h3><h3 style="text-align: left;">जग जीवन थोड़ा </h3><h3 style="text-align: left;">रे ||1||</h3><h3 style="text-align: left;">या देही का गरव न कीजे, </h3><h3 style="text-align: left;">क्या सांवर क्या गोरा </h3><h3 style="text-align: left;">रे, ||2||</h3><p>बिना भक्ति तन काम न आवे, </p><p>कोटि सुगंध चमोरा</p><p>रे ||3||</p><p>या माया का गरव न कीजे, </p><p>क्या हाथी क्या घोड़ा</p><p>रे ||4||</p><p>जोड जोड धन बहुत बिगूचे, </p><p>लाखन कोट करोडा</p><p>रे ||5||</p><p>दुविधा दुरमति और चतुराई, </p><p>जनम गयो नर बोरा</p><p>रे ||6||</p><p>अजहुँ आन मिलो सतसंगत, </p><p>सतगुरु मान निहोरा</p><p>रे ||7||</p><p>लेत उठाय पडत भुई गिर गिर, </p><p>जयो बालक बिन </p><p>कोरा रे ||8||</p><h3 style="text-align: left;">कहैं कबीर चरन चित राखो, </h3><h2 style="text-align: left;">जैसे सूई बिच डोरा</h2><h3 style="text-align: left;">रे ||9||</h3><p>🙏🌹🙏🌹🙏</p>ASBAbalnews.blogsport.comhttp://www.blogger.com/profile/04877463731116222930noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6295157689257447875.post-74916945225221612372024-01-21T18:04:00.000-08:002024-01-21T18:04:18.440-08:00तुलसी के राम यानी राम के तुलसी <h1 style="text-align: left;"> *राम के तुलसी*</h1><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">प्रस्तुति - रेणु दत्ता / आशा सिन्हा </h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">वटवृक्ष के नीचे एक चबूतरे पर महात्मा अपनी मधुर वाणी से रामकथा गा रहे थे और नीचे बैठे श्रोता उस भावजगत में डूबकर आत्मविभोर थे। भीड़ में सबसे पीछे एक असाधारण व्यक्तित्व का पुरुष भी बैठा हुआ था जिसने अपना चेहरा अपनी पगड़ी से ढंका हुआ था लेकिन उसके व्यक्तित्व व विशाल नेत्रों में जाने क्या आकर्षण था कि महात्माजी की दृष्टि उसकी ओर बार-बार जा रही थी। </h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">सहसा उनकी दृष्टि अभी-अभी आये वृद्ध स्त्री पुरुषों की ओर पड़ी जो उन्हें दूर से ही प्रणाम कर वहीं खड़े हो गए। महात्मा ने उन्हें इशारे से पास बुलाया। *महाराज हम भील है, हम भी रामकथा सुनना चाहते हैं।* सकुचाते हुये उनके अगुआ वृद्ध ने कहा। </h3><h3 style="text-align: left;">*"तो वहाँ क्यों खड़े हो? समीप आओ वत्स !! यहाँ से कथा अच्छे से सुनाई देगी।"-* महात्मा ने उन्हें आमंत्रित किया।</h3><p><br /></p><p>सहसा भीड़ में भिनभिनाहट शुरू हो गयी। </p><p><br /></p><p>*"क्या बात है?"* महात्मा ने पूछा</p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">*महाराज जी, यह कोल भील क्या जानें कथा का मर्म? अभी कल शराब पीकर उत्पात मचाएंगे और हमारा रस भंग होगा।* भीड़ के एक प्रौढ़ व्यक्ति ने कहा। </h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">लगभग सभी व्यक्ति उससे सहमत प्रतीत हो रहे थी। महात्मा के प्रशांत चेहरे पर खिन्नता उभरी परंतु उन्होंने अपनी मधुर,प्रशांत वाणी में कहा- *कैसी बातें करते हो वत्स? क्या भूल गए कि इन कोल-भीलों के पूर्वजों ने मेरे राम का साथ उस समय दिया जब वे भैया लखन लाल के साथ अकेले रह गए थे।*</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">*"वह ठीक है महाराज लेकिन ये यहाँ बैठेंगे तो यहाँ का वातावरण दूषित होगा और आपने भी तो रामचरित मानस में कोलों, तेलियों, चांडालों, शूद्र आदि को निकृष्ट बताया है।*</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">*संदर्भरहित व लोक प्रचलित मुहावरों के आधार पर अनर्गल व्याख्या न करो पुत्र !! मेरे राम जिनके साथ चौदह वर्ष रहे उन पुण्यात्माओं के वंशज हैं यह। इनको तो मैं अपने चाम के जूते भी पहनाऊँ तो भी कम हैं, क्योंकि मैं तो राम के दासों का दास हूं जबकि ये तो उनके सहयोगी रहे।* संत के स्वर में आवेश था। </h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">*"अरे, छोड़ो मेरी बात को। कम से कम अपने राजा की ओर तो देखो कि किस तरह वह इन कोल भीलों को भाई की तरह मानता है। कम से कम उससे ही सीखो।"* लेकिन भीड़ पर कोई असर नहीं हुआ और एक-एक करके लोग सरक गये सिर्फ पीछे वाला असाधारण व्यक्ति अपने स्थान पर विराजमान रहा। </h3><p><br /></p><p>अप्रभावित संत ने भीलों को बिठाया और पुनः परिवेश में रामकथामृत बहने लगा।</p><p> </p><p>कथा समाप्त हुई। </p><p>भीलों ने जंगली फल कथा में अर्पित किए और खड़े हो गए। </p><p>*"कुछ कहना चाहते हो?"* अगुआ वृद्ध अचकचा गया।</p><p><br /></p><p>*जी..वो..हम आपके चरण-स्पर्श करना चाहते हैं। हिचकते हुये वृद्ध ने कहा।*</p><p><br /></p><p>संत की आँखों में आँसू आ गए। </p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">*"मेरे राम के मित्र थे आप लोग और मैं राम का दास। मैं आप लोगों से चरणस्पर्श नहीं करवा सकता...."* रुंधे कंठ से संत ने कहा और भील वृद्ध को गले लगा लिया।</h3><p> </p><p>भील अभिभूत थे। </p><p><br /></p><p>उनके जाने के बाद संत ने उस व्यक्तित्व को पास बुलाया। </p><p>*बहुत दुःखी दिखते हो भैया।* </p><p>आगुंतक की आंखें छलछला आईं और उसका सिर झुक गया। </p><p>*"मेरे देश पर मुगलों ने कब्जा कर लिया है और अब कोई आशा नहीं बची है।"* आगुंतक ने निराश स्वर में कहा।</p><p> </p><h3 style="text-align: left;">*"जब तक महाराणा प्रताप जीवित हैं तब तक निराशा की कोई बात नहीं।"* संत के स्वर में गर्जना थी। </h3><p><br /></p><p>आगुन्तक की आंखों से आँसू बह निकले और वह संत के चरणों को पकड़कर बैठ गया। </p><p><br /></p><p>*मैं वह अभागा प्रताप ही हूँ, गोस्वामी जी।* आगुन्तक ने टूटे ढहते स्वर में मुँह पर से वस्त्र हटाते हुए कहा। </p><p><br /></p><p>*उस युग के दो अप्रतिम व्यक्तित्व एक दूसरे के आमने सामने थे-* </p><p><br /></p><p>*'महाराणा प्रताप और गोस्वामी तुलसीदास"*</p><p>*एक राम का रक्त वंशज और एक राम का अनन्य भक्त।* </p><p><br /></p><p>गोस्वामीजी की आंखों में आश्चर्य के भाव उभरे और कंधों से पकड़कर महाराणा को उठाया,</p><p>*ये कैसा अनर्थ करते हैं राणाजी? मेरे राम का रक्त जिसकी धमनियों में दौड़ रहा है उसे यह कातरता शोभा नहीं देती।*</p><p><br /></p><p>*"पर मैं नितांत अकेला रह गया हूँ गोस्वामीजी।"* </p><p><br /></p><p>*क्या मेरे राम वन में अकेले नहीं थे? पर क्या उन्होंने सीता मैया को ढूंढने से हार मान ली थी?* </p><p>*तुम कहते हो कि अकेले हो तो राम की राह क्यों नहीं चलते?*</p><p>महाराणा की आँखों में प्रश्न था। </p><p><br /></p><p>*"प्रभु राम ने रावण से युद्ध किसके साथ मिलकर किया था?"* मुस्कुराते हुए तुलसी ने पूछा। </p><p><br /></p><p>*वानरों के साथ।*</p><p><br /></p><p>*तो पहचानिये !! अपने वानरों को, हनुमानों को। ये वनवासी भील आपके लिए वही वानर हैं।"* ओजस्वी स्वर में उन्होंने कहा।</p><p><br /></p><p>*"मैंने स्वयं देखा है कि इन कोल भीलों के मन में तुम्हारे लिए कितना सम्मान है। तुमने ही तो कहा था न कि- *राणी जाया भीली जाया भाई-भाई!*</p><p>महाराणा की बुझी हुई आंखों में चमक उभरने लगी। </p><p><br /></p><p>*इन भीलों को,इन वनों को ही अपनी शक्ति बनाओ राणा जी !! मेरे राम सब मंगल करेंगे।* संत ने आशीर्वाद दिया।</p><p><br /></p><p>*स्वतंत्रता का सूर्य अपने पूरे तेज़ से महाराणा प्रताप की आंखों में दमक उठा।*</p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">*शुभ प्रभात। आज का दिन आपके लिए शुभ एवं मंगलकारी हो।*</h3>ASBAbalnews.blogsport.comhttp://www.blogger.com/profile/04877463731116222930noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6295157689257447875.post-43388288297517688852024-01-19T23:04:00.000-08:002024-01-19T23:06:08.972-08:00हुज़ूर सत्संगी जी महाराज द्वारा रचित <h1 style="text-align: left;"> स्वणि॔म शुकराना</h1><p>🌹🌹🌹🌹</p><h1 style="text-align: left;">ग्रेशस हुजूर सतसंगी साहब जी द्वारा रचित</h1><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">गाऊँ रा-धा-स्व-आ-मी परम गुरु महिमा |</h3><h3 style="text-align: left;">सुनाऊँ दया निज धार का बहना ||</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">काशीवासी भोलानाथ साहब मित्र रहना |</h3><h3 style="text-align: left;">कनिका भक्तसहेली कृष्ण कुमार ब्याहना ||</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">एक नहीं तीन संतान अल्पायु रह जाना |</h3><h3 style="text-align: left;">भोलानाथ करें फरियाद साहब देव एक दाना ||</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">होय संतान दीघऻयु सतसंग संस्कार समाना |</h3><h3 style="text-align: left;">अस दयालदेई प्रेम सरन जन्म पा जाना ||</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">यथा प्रेम रंग होली खेलन संयोग मिलाना |</h3><h3 style="text-align: left;">मेहता साहब प्रेम सरन पर्म आदर्श रहाना ||</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">सत्यवती विश्वनाथ-प्रेमबाला घर जन्माना |</h3><h3 style="text-align: left;">अत एव प्रेम-सत्य संगम दीपावली पुन पुन सजाना ||</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">सुरत समागम हेतु प्रेम और दयाल प्यारी आ जाना |</h3><h3 style="text-align: left;">रजत जयंती पर्म गुरु हुजूर चरन सरन मनाना ||</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">अर्श बानी मुक्ति भी सुरत समागम संयोग मिलाना |</h3><h3 style="text-align: left;">पाणिग्रहण स्वणऺ-जयती रा-धा-स्व-आ-मी रा-धा-स्व-आ-मी शुकराना गाना ||</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">जिन्ही अपार मेहर-वृष्टि दासानुदास सरन पर होना |</h3><h3 style="text-align: left;">जिन समरथ सतगुरु दाता संस्पर्शन प्रेम पुनः पुनः पा जाना ||</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">जस पारस स्पर्श से लोहा बन जाय सोना |</h3><h3 style="text-align: left;">तस गुरु पाणिग्रहण से गुरुमुख गुरु-गति पाना ||</h3><h3 style="text-align: left;">मै बुलबुल सम भया हूँ मस्ताना |</h3><h3 style="text-align: left;">स्वणिऺम शुकराना गाता हूँ शुकराना ||</h3><div><br /></div><div>❤️❤️</div><p>🌹🌹🌹🌹🌹</p>ASBAbalnews.blogsport.comhttp://www.blogger.com/profile/04877463731116222930noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6295157689257447875.post-55526721096284042332024-01-15T07:35:00.000-08:002024-01-15T07:36:22.401-08:00वचन <p> *राधास्वामी सहाय । </p><p> </p><h3 style="text-align: left;">15-01-24-आज शाम सतसंग में पढ़ा गया बचन- [रोजाना वाक़िआत-1 जनवरी सन् 1932 ई० से 2 अप्रैल सन् 1933 ई० तक] </h3><h3 style="text-align: left;">{भाग-2}- (1.1.32 शुक्र)- आज अंग्रजों का नया दिन है और रा धा/ध: स्व आ मी एजूकेशनल इंस्टीट्यूट का जन्मदिन है। यकुम जनवरी सन् 1917 ई० को इंस्टीट्यूट कायम(स्थापित) की गई थी। इसलिए आज के दिन तुलबा (विद्यार्थीगण) खूब खुशियां मनाते हैं। 2½ बजे से खेलें शुरू हुई और 5 बजे तक होती रहीं। और सुबह के वक्त 8 बजे से 11:30 बजे तक छोटे बच्चों की नुमाइश हुई।</h3><h3 style="text-align: left;"> कामयाब तुलबा व बच्चो को इनामात तकसीम (वितरित) किये गये। दो इनाम तुकबन्दी के लिए थे। मैंने यह तुक पेश की "क्यों सोच करे मन भाई" एक बच्चे ने दूसरा मिसरा यह बनाया- "तेरे हित की कहूँ बुझाई" - उसे अव्वल इनाम दिया गया। एक लड़की ने अपनी तरफ़ से यह तुकें बनाई</h3><h3 style="text-align: left;"> "मैंने देखा गधा एक मोटा ताजा बना फिरता था जंगल का वह राजा" उसे दोयम इनाम दिया गया। सतसंगियों से सवाल किया गया "सतसंग का सबसे बड़ा दुश्मन कौन है?" एक भाई ने जवाब दिया- "मन" उसे फ़ाउण्टेनपेन इनाम दिया गया। रात के सतसंग में तुलबा की तरफ से परशाद तकसीम हुआ। छोटे बच्चों को खूबसूरती, सेहत, सफाई, चुस्ती वगैरा के लिए इनामात दिये गये। छोटे बच्चों के इम्तिहानात का इंतजाम मिस ब्रूस के जिम्मे था। और बड़े बच्चों का प्रिंसिपल साहब इंस्टीट्यूट के जिम्मे। </h3><h3 style="text-align: left;">हिसाब देखने से मालूम हुआ कि गुजिश्ता (गत) नौ माह में जनरल भेंट 90 हजार के क़रीब हुई जो उम्मीद से बहुत बढ़कर है लेकिन डेरी भेंट सिर्फ 28 हजार के करीब हुई जो बहुत कम है। लेकिन साल के अभी 3 माह बाकी हैं। </h3><h3 style="text-align: left;">🙏🏻रा धा/ध: स्व आ मी🙏🏻 रोजाना वाकिआत-परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज!*</h3><div><br /></div>ASBAbalnews.blogsport.comhttp://www.blogger.com/profile/04877463731116222930noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6295157689257447875.post-90094404659775968532024-01-03T23:24:00.000-08:002024-01-03T23:24:45.137-08:00स्मारिका<h1 style="text-align: left;"> </h1><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">(परम पुरुष पूरन धनी हुज़ूर महाराज)</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">संत सतगुरु के रूप में</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">(पिछले दिन का शेष)</h3><p><br /></p><h4 style="text-align: left;">जब वे आगरा में रहते थे, अपने गुरू महाराज की सेवाएँ स्वयं करते थे, किसी दूसरे को न करने देते थे। वे उनके लिए आटा पीसते, उनका भोजन बनाते और स्वयं अपने हाथ से परोस कर खिलाते थे, प्रतिदिन प्रातः काल उनको अपने गुरू महाराज के स्नान के लिए शुद्ध पानी से भरा घड़ा अपने सिर पर लाते हुए देखा जा सकता था। यह पानी वे एक कुएँ से, जो दो मील दूरी पर था, खींच कर लाते थे। वे अपना मासिक वेतन गुरू महाराज को पेश कर देते थे जो अपने शिष्य की पत्नी और बच्चों पर ख़र्च कर देते थे और शेष धर्मार्थ कार्यों पर व्यय कर देते थे। उनके परिवार के सब कामों की देखभाल उनके गुरू महाराज करते थे और यह सब कुछ जाति -बिरादरी के लोगों के, जो कि कायस्थ थे, विरोध करने के बावजूद भी किया जाता था। जात बिरादरी के लोग यह पसंद नहीं करते थे कि उनकी जाति का कोई व्यक्ति एक संत का खाना बनाए और उनका जूठा खाए क्योंकि वह संत दूसरी जाति (खत्री) के थे। कुछ समय पश्चात् हुज़ूर महाराज ने चाहा कि वे पोस्टल सर्विस से रिटायर हो जाएँ परन्तु उनके सतगुरू ने इजाज़त नहीं दी। जब वे उत्तरी -पश्चिमी प्रान्तों के पोस्ट मास्टर जनरल नियुक्त हुए तो उन्होंने अपने संत सतगुरू के सामने घुटने टेक कर प्रार्थना की कि उनको रिटायर होने की इजाज़त दी जाए ताकि तन, मन और सुरत से आध्यात्मिक जीवन में संलग्न हो जाएँ। परन्तु संत सतगुरू ने एक बार फिर यह कहते हुए कि अपने पद सम्बन्धी कर्त्तव्यों के पालन से उनकी आध्यात्मिक उन्नति में कोई बाधा नहीं पड़ेगी, उनकी प्रार्थना अस्वीकार कर दी। उसके पश्चात आगरा छोड़ कर कई वर्षों तक नए पद पर इलाहाबाद में कार्य करते रहे। कहा जाता है कि इस समय उन्होंने बड़ी सफलता प्राप्त की और पोस्टल डिपार्टमेन्ट में कई उपयोगी परिवर्तन किए।</h4><p><br /></p><h3 style="text-align: left;"> ''सन् 1878 ई. में उनके गुरू के देहावसान के बाद पोस्ट मास्टर जनरल ने अपने को स्वतन्त्र समझ कर राजकीय सेवा से निवृत्ति का समय उपयुक्त समझा। वे स्वयं गुरू बन गए और उन लोगों को आध्यात्मिक उन्नति का उपदेश देने लगे जो उनके पास इस सहायतार्थ आते थे। जो लोग हुज़ूर महाराज का उपदेश सुनने के लिए आते थे वे प्रायः संसार से विरक्त हो कर सन्यासी बन जाते थे। इस कारण यह एक आम धारणा बन गई कि जो व्यक्ति राय सालिगराम साहब बहादुर के पास जाएगा वह अपना परिवार छोड़कर सन्यासी बन जाएगा। यही नहीं प्रत्युत यह भी कहा जाता था कि जो मनुष्य उनके मकान की ऊपरी मंज़िल के लैम्प की ओर भी देखता था वह भी संसार से वैराग्य लिए बिना नहीं बच सकता था। वह भी अपने परिवार को त्याग कर संसार के लिए बेकार साबित हो जाता था। अन्तिम बार जब हुज़ूर महाराज के विषय में सुना तो यह ज्ञात हुआ कि वे वयोवृद्ध व्यक्ति अभी जीवित हैं और उनके मकान पर स्त्रियों व पुरुषों की भारी भीड़ प्रतिदिन इकट्ठा होती है जो देश के भिन्न-भिन्न भागों से आते हैं। वे दिन और रात में पाँच बार, धार्मिक उपदेश देने के लिए, सतसंग करते हैं। इस कारण उनको सोने तक के लिए दो घन्टों से अधिक नहीं मिल पाते। उनके मकान पर सब का स्वागत होता है और ब्राह्मण, शूद्र, अमीर, ग़रीब और अच्छे व बुरे का कोई भेद भाव नहीं बर्ता जाता। लोगों का विश्वास है कि वे चमत्कार दिखा सकते हैं परन्तु गुरू महाराज ऐसी बातों को पसंद नहीं करते और चमत्कार दिखाना अपनी मर्यादा के विरुद्ध समझते हैं। कहा जाता है कि वायसराय के असिस्टेन्ट सर्जन स्वर्गीय डाक्टर मुकुन्दलाल हुज़ूर महाराज के पास ऐसे रोगियों को भेजा करते थे जो बहुत अधिक प्राणायाम करके अपने होश हवास खो बैठते थे। हुज़ूर महाराज केवल एक दृष्टि डालकर ही ऐसे रोगियों को चंगा कर देते थे और उनको समझाते थे कि प्राणायाम का अभ्यास उनके लिए बिलकुल लाभदायक नहीं है और कई स्थितियों में हानिकारक हो सकता हैं।''</h3>ASBAbalnews.blogsport.comhttp://www.blogger.com/profile/04877463731116222930noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6295157689257447875.post-48387096425919673912023-12-29T10:49:00.000-08:002023-12-29T10:53:33.886-08:00सतसंग पाठ के अनमोल कड़ियां <p><br /></p><p>🙏🌹🙏राधास्वामी🙏🌹🙏</p><p><br /></p><p>दुखित तुम बिन, रटत निसदिन,</p><p>प्रगट दर्शन दीजिए;</p><p> बिनती सुन प्रिय स्वामियाँ,</p><p>बलि जाऊँ बिलम्ब न कीजिएँ 🙏</p><p><br /></p><p>🌹🙏राधास्वामी🙏🌹🙏</p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p>🙏🌹🙏राधास्वामी🙏🌹🙏</p><p><br /></p><p>पिया मेरे और मैं पिया की,</p><p>कुछ भेद न जानो कोई,</p><p>जो कुछ होये सो मौज से होई,</p><p>पिया समरथ करे सोई</p><p>🙏🌹🙏राधास्वामी🙏🌹🙏</p><p><br /></p><p><br /></p><p>🙏🌹🙏राधास्वामी🙏🌹🙏</p><p><br /></p><p>गुरू प्यारे की दम दम शुक्रगुज़ार</p><p><br /></p><p>🙏🌹🙏राधास्वामी🙏🌹🙏</p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p>🙏🌹🙏राधास्वामी🙏🌹🙏</p><p><br /></p><p>सुमरिन करले हिये धर प्यार राधास्वामी नाम का आधार</p><p><br /></p><p>🙏🌹🙏राधास्वामी🙏🌹🙏</p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p>🙏🌹🙏राधास्वामी🙏🌹🙏</p><p><br /></p><p>मैं हू बाल अनाड़ी प्यारे</p><p> तुम हो दाता अपर अपारे</p><p> राखो चरनन मोहि सदा रे मेरी निसदिन यही पुकारी</p><p><br /></p><p>🙏🌹🙏राधास्वामी🙏🌹🙏</p><p><br /></p><p>🙏🙏 *राधास्वामी* 🙏🙏</p><p><br /></p><p>गुरु की मौज रहो तुम धार।</p><p>गुरु की रज़ा सम्हालो यार।।</p><p><br /></p><p>गुरु जो करें सो हित कर जान।</p><p> </p><p>गुरु जो कहें सो चित धर मान।।</p><p>शुक़र की करना समझ विचार।</p><p> </p><p>सुख दुःख देंगे हिक़मत धार।।</p><p><br /></p><p>🙏🙏 *राधास्वामी</p><p><br /></p><p><br /></p><p>🌹🙏राधास्वामी 🌹🙏</p><p>मैं चेरी स्वामी तुम्हरे घर की ।</p><p>साफ करो बुद्धि मायावर की ।।</p><p>तब स्वामी ने दिया दिलासा ।</p><p>प्रेम पंख ले उड़े आकाशा ।।</p><p>🌹🙏राधास्वामी 🌹🙏</p><p><br /></p><p>🙏🌹राधास्वामी 🌹🙏</p><p><br /></p><p>पलटू सतगुरु के बिना सरे न एको काज ।</p><p>भवसागर से तारता सतगुरु नाम जहाज ।।</p><p>🙏🌹राधास्वामी 🙏🌹</p><p><br /></p><p><br /></p><p>🌹🙏</p><p>पलटू पारस क्या करे</p><p>ज्यों लोहा खोटा होय ।</p><p>साहिब सबको देत हैं</p><p>लेता नाहीं कोय ।।</p><p><br /></p><p>🌹🙏राधास्वामी 🌹🙏</p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p>🌹🙏राधास्वामी🙏🌹🙏</p><p><br /></p><p>सतपुरूष तुम सतगुरू दाता</p><p>सब जीवन के पितु और माता,</p><p>दया धार अपना कर लीजै</p><p>काल जाल से न्यारा कीजै</p><p><br /></p><p>🙏🌹🙏राधास्वामी🙏🌹🙏</p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p>🙏🌹🙏राधास्वामी🙏🌹🙏</p><p><br /></p><p>राधास्वामी दयाल दया के सागर, अपनापन न बिसारो;</p><p>पाप करम मैं सदा से करता,</p><p>जीव दया चित्त धारो</p><p><br /></p><p>🙏🌹🙏राधास्वामी🙏🌹🙏🙏</p><p><br /></p><p>🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏</p><p><br /></p>ASBAbalnews.blogsport.comhttp://www.blogger.com/profile/04877463731116222930noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6295157689257447875.post-88889314538409333192023-12-27T18:24:00.000-08:002023-12-27T18:24:22.769-08:00वचन <p>*रा धा/ध: स्व आ मी! </p><p><br /></p><p> </p><p>27-12-23- आज शाम सतसंग में पढ़ा गया बचन- कल से आगे:-</p><p> (22.12.31 मंगल का तीसरा भाग)-</p><p><br /></p><p>कल 6 शादियां होंगी। फरीकैन (पक्षकार गण) ने जेवर व कपडे दिखलाये। शुक्र है कि अब सतसंगिन बहनों को समझ आ गई है कि दयालबाग की साख्ता (निर्मित ) अशिया (वस्तुएं ) शादी में देने से अपना व कुल संगत का भला है।</p><p> प्रेमी भाई जयन्ती प्रसाद एम० ए० ने अपनी दुख्तर (पुत्री) को करीबन सभी कपडे दयालबाग के बुने हुए दिये हैं। और दूसरे असहाब (लोगों) ने भी दयालबाग के कपडों व जेवरों की काफ़ी तादाद इस्तेमाल की है। सुनहरी फाउण्टेनपेन, ग्रामोफोन, बेशक़ीमत (बहुमूल्य ) सुनहरी साडिया, तिलाई (स्वर्ण) जेवर ऐसी चीज़े हैं जो दयालबाग में साख्त होती हैं और मुकर्ररह (नियत) दामों पर बिकती हैं और जिनके खरीदार को किसी किस्म के धोखे का एहतिमाल (आशंका) नहीं है।</p><p>जेवरात के लिये अभी एक नामी कारीगर कलकत्ता से बुलाया गया है। उसकी मदद से उम्मीद है कि जेवरात का काम खूब चमकेगा। लोग नहीं जानते बेईमान सुनार उन्हें टाके व मिलावट के जरीये कैसी बेरहमी से लूटते हैं</p><p>दयालबाग में इस सीगे (विभाग) के तरक़्क़ी करने से सतसंगी भाइयों को हर साल हज़ारों रुपये की बचत रहेगी। क्रमशः-------- 🙏🏻रा धा/ध: स्व आ मी🙏🏻 रोजाना वाकिआत-परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज!*</p><p><br /></p>ASBAbalnews.blogsport.comhttp://www.blogger.com/profile/04877463731116222930noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6295157689257447875.post-89782856498017525822023-12-13T21:29:00.000-08:002023-12-13T21:31:06.395-08:00चरित्र बड़ा या ज्ञान <h3 style="text-align: left;"><br /></h3><p><br /></p><p>*🌳 🌳*</p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">एक राजपुरोहित थे। वे अनेक विधाओं के ज्ञाता होने के कारण राज्य में अत्यधिक प्रतिष्ठित थे। बड़े-बड़े विद्वान उनके प्रति आदरभाव रखते थे पर उन्हें अपने ज्ञान का लेशमात्र भी अहंकार नहीं था। उनका विश्वास था कि ज्ञान और चरित्र का योग ही लौकिक एवं परमार्थिक उन्नति का सच्चा पथ है। प्रजा की तो बात ही क्या स्वयं राजा भी उनका सम्मान करते थे और उनके आने पर उठकर आसन प्रदान करते थे।</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">एक बार राजपुरोहित के मन में जिज्ञासा हुई कि राजदरबार में उन्हें आदर और सम्मान उनके ज्ञान के कारण मिलता है अथवा चरित्र के कारण? इसी जिज्ञासा के समाधान हेतु उन्होंने एक योजना बनाई। योजना को क्रियान्वित करने के लिए राजपुरोहित राजा का खजाना देखने गए। खजाना देखकर लौटते समय उन्होंने खजाने में से पाँच बहुमूल्य मोती उठाए और उन्हें अपने पास रख लिया। खजांची देखता ही रह गया। राजपुरोहित के मन में धन का लोभ हो सकता है। खजांची ने स्वप्न में भी नहीं सोचा था। उसका वह दिन उसी उधेड़बुन में बीत गया।</h3><p><br /></p><p>दूसरे दिन राजदरबार से लौटते समय राजपुरोहित पुन: खजाने की ओर मुड़े तथा उन्होंने फिर पाँच मोती उठाकर अपने पास रख लिए। अब तो खजांची के मन में राजपुरोहित के प्रति पूर्व में जो श्रद्धा थी वह क्षीण होने लगी।</p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">तीसरे दिन जब पुन: वही घटना घटी तो उसके धैर्य का बाँध टूट गया। उसका संदेह इस विश्वास में बदल गया कि राजपुरोहित की नीयत निश्चित ही खराब हो गई है। उसने राजा को इस घटना की विस्तृत जानकारी दी। इस सूचना से राजा बहुत आहत हुआ। उनके मन में राजपुरोहित के प्रति आदरभाव की जो प्रतिमा पहले से प्रतिष्ठित थी वह चूर-चूर होकर बिखर गई।</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">चौथे दिन जब राजपुरोहित सभा में आए तो राजा पहले की तरह न सिंहासन से उठे और न उन्होंने राजपुरोहित का अभिवादन किया, यहाँ तक कि राजा ने उनकी ओर देखा तक नहीं। राजपुरोहित तत्काल समझ गए कि अब योजना रंग ला रही है। उन्होंने जिस उद्देश्य से मोती उठाए थे, वह उद्देश्य अब पूरा होता नजर आने लगा था। यही सोचकर राजपुरोहित चुपचाप अपने आसन पर बैठ गए। राजसभा की कार्यवाही पूरी होने के बाद जब अन्य दरबारियों की भाँति राजपुरोहित भी उठकर अपने घर जाने लगे तो राजा ने उन्हें कुछ देर रुकने का आदेश दिया। सभी सभासदों के चले जाने के बाद राजा ने उनसे पूछा- "सुना है आपने खजाने में कुछ गड़बड़ी की है।"</h3><p><br /></p><p>इस प्रश्न पर जब राजपुरोहित चुप रहे तो राजा का आक्रोश और बढ़ा। इस बार वे कुछ ऊँची आवाज में बोले -"क्या आपने खजाने से कुछ मोती उठाए हैं?"</p><p><br /></p><p>राजपुरोहित ने मोती उठाने की बात को स्वीकार किया।</p><p><br /></p><p>राजा का अगला प्रश्न किया- "आपने कितेने मोती उठाए और कितनी बार? वे मोती कहाँ हैं?"</p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">राजपुरोहित ने एक पुड़िया जेब से निकाली और राजा के सामने रख दी जिसमें कुल पंद्रह मोती थे। राजा के मन में आक्रोश, दुख और आश्चर्य के भाव एक साथ उभर आए। राजा बोले - "राजपुरोहित जी आपने ऐसा गलत काम क्यों किया? क्या आपको अपने पद की गरिमा का लेशमात्र भी ध्यान नहीं रहा। ऐसा करते समय क्या आपको लज्जा नहीं आई? आपने ऐसा करके अपने जीवनभर की प्रतिष्ठा खो दी। आप कुछ तो बोलिए, आपने ऐसा क्यों किया?"</h3><p><br /></p><p>राजा की अकुलाहट और उत्सुकता देखकर राजपुरोहित ने राजा को पूरी बात विस्तार से बताई तथा प्रसन्नता प्रकट करते हुए राजा से कहा -"राजन् केवल इस बात की परीक्षा लेने हेतु कि ज्ञान और चरित्र में कौन बड़ा है, मैंने आपके खजाने से मोती उठाए थे, अब मैं निर्विकल्प हो गया हूँ। यही नहीं आज चरित्र के प्रति मेरी आस्था पहले की अपेक्षा और अधिक बढ़ गई है।"</p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">कुछ पल ठहर कर राजपुरोहित ने आगे कहा -"आपसे और आपकी प्रजा से अभी तक मुझे जो प्यार और सम्मान मिला है वह सब ज्ञान के कारण नहीं अपितु चरित्र के ही कारण था। आपके खजाने में सबसे अधिक बहुमू्ल्य वस्तु सोना-चाँदी या हीरा-मोती नहीं बल्कि चरित्र है। अत: मैं चाहता हूँ कि आप अपने राज्य में चरित्र संपन्न लोगों को अधिकाधिक प्रोत्साहन दें ताकि चरित्र का मूल्य उत्तरोत्तर बढ़ता रहे।" कहा जाता है धन गया कुछ नहीं गया, स्वास्थ्य गया तो कुछ गया। चरित्र गया तो सब कुछ गया।</h3><p><br /></p><p>*</p>ASBAbalnews.blogsport.comhttp://www.blogger.com/profile/04877463731116222930noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6295157689257447875.post-87849147826886188412023-12-04T18:05:00.000-08:002023-12-04T18:05:34.631-08:00माप-अमाप*<h1 style="text-align: left;"><br /></h1><h1 style="text-align: left;">*प्रस्तुति - स्वामी शरण</h1><div><br /></div><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">गुरुनानकजी एक बार लाहौर में ठहरे। तो लाहौर का जो सब से धनी आदमी था, वह उनके चरणों में नमस्कार करने आया। वह बहुत धनी आदमी था। लाहौर में उन दिनों ऐसा रिवाज था कि जिस आदमी के पास एक करोड़ रुपया हो, वह अपने घर पर एक झंडा लगाता था। इस आदमी के घर पर कई झंडे लगे थे। इस आदमी का नाम था, सेठ दुनीचंद। उसने नानक के चरणों में सिर रखा और कहा कि कुछ आज्ञा दें मुझे। मैं कुछ सेवा करना चाहता हूं। धन बहुत है आपकी कृपा से। आप जो भी कहेंगे, वह मैं पूरा कर दूंगा।</h3><p><br /></p><h4 style="text-align: left;">नानक ने अपने कपड़ों में छिपी हुई एक छोटी सी कपड़े सीने की सुई निकाली, दुनीचंद को दी, और कहा, इसे सम्हाल कर रखना। और मरने के बाद मुझे वापस लौटा देना।</h4><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">दुनीचंद अपनी अकड़ में था। उसे समझ ही न आयी। उसे कुछ खयाल ही न आया कि यह क्या गुरु नानक कह रहे हैं! उसने कहा, जैसी आपकी आज्ञा। जो आप कहें, कर दूंगा। अकड़ का समय होता है आदमी के मन का, तब आदमी अंधा होता है कि कुछ चीजें असंभव हैं। धन से तो हो ही नहीं सकतीं। घर लौटा। लेकिन घर लौटते-लौटते उसे भी खयाल आया कि मर कर लौटा देंगे! लेकिन जब मैं मर जाऊंगा, तब इस सुई को साथ कैसे ले जाऊंगा?</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">वापस लौटा। और कहा कि आपने थोड़ा बड़ा काम दे दिया। मैं तो सोचा, बड़ा छोटा काम दिया है। और क्या मजाक कर रहे हैं? सुई को बचाने की जरूरत भी क्या है? लेकिन संतों का रहस्य! सोचा, होगा कुछ प्रयोजन। लेकिन क्षमा करें। यह अभी वापस ले लें। क्योंकि यह उधारी फिर चुक न सकेगी। अगर मैं मर गया तो सुई को साथ कैसे ले जाऊंगा?</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">तो नानक ने कहा, सुई वापस कर दो। प्रयोजन पूरा हो गया है। यही मैं तुमसे पूछता हूं कि अगर एक सुई न ले जा सकोगे, तो तुम्हारी जो करोड़ों-करोड़ों की संपदा है, उसमें से क्या ले जा सकोगे? अगर एक छोटी सी सुई को तुम न ले जा सकोगे पार, तो और तुम्हारे पास क्या है, जो तुम ले जा सकोगे? दुनीचंद, तुम गरीब हो। क्योंकि अमीर तो वही है जो मौत के पार कुछ ले जा सके।</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">लेकिन जो भी मापा जा सकता है, वह मौत के पार नहीं ले जाया सकता। जो अमाप है, इम्मेजरेबल है, जिसको हम माप नहीं सकते, वही केवल मौत के पार जाता है।</h3><h3 style="text-align: left;">दुनिया में दो ही तरह के लोग हैं। एक, जो मापने की ही चिंता करते रहते हैं। खोज करते हैं उसकी, जो मापा जा सकता है, तौला जा सकता है। और एक, mजो उसकी खोज करते हैं, जो तौला नहीं जा सकता। पहले वर्ग के लोग धार्मिक नहीं हैं, संसारी हैं। दूसरे वर्ग के लोग धार्मिक हैं, संन्यासी हैं।</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">अमाप की खोज धर्म है। और जिसने अमाप को खोज लिया, वह मृत्यु का विजेता हो गया। उसने अमृत को पा लिया। जो मापा जा सकता है, वह मिटेगा। जिसकी सीमा है, वह गलेगा। जिसकी परिभाषा हो सकती है, वह आज है, कल खो जाएगा। हिमालय जैसे पहाड़ भी खो जाएंगे। सूर्य, चांद, तारे भी बुझ जाएंगे। बड़े से बड़ा, थिर से थिर...पहाड़ को हम कहते हैं, अचल; वह भी चलायमान है। वह भी खो जाएगा। वह भी बचेगा नहीं। वह भी थिर नहीं है। जहां तक माप जाता है वहां तक सभी अस्थिर है, परिवर्तनशील है। जहां तक माप जाता है, वहां तक लहरें हैं। जहां माप छूट जाता है, सीमाएं खो जाती हैं, वहीं से ब्रह्म का प्रारंभ है।</h3><p><br /></p><p>एक ओंकार सतनाम</p>ASBAbalnews.blogsport.comhttp://www.blogger.com/profile/04877463731116222930noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6295157689257447875.post-21313950997134674792023-12-03T18:58:00.000-08:002023-12-03T18:58:39.695-08:00संस्कार <p><br /></p><p>प्रस्तुति - कृति / दिव्यांश </p><p>*🌳 संस्कार क्या है 🌳*</p><p><br /></p><p>एक राजा के पास सुन्दर घोड़ी थी। कई बार युद्व में इस घोड़ी ने राजा के प्राण बचाये और घोड़ी राजा के लिए पूरी वफादार थीI कुछ दिनों के बाद इस घोड़ी ने एक बच्चे को जन्म दिया, बच्चा काना पैदा हुआ, पर शरीर हष्ट पुष्ट व सुडौल था।</p><p><br /></p><p>बच्चा बड़ा हुआ, बच्चे ने मां से पूछा: *मां मैं बहुत बलवान हूँ, पर काना हूँ.... यह कैसे हो गया"* </p><p><br /></p><p>इस पर घोड़ी बोली: *"बेटा जब में गर्भवती थी, तू पेट में था तब राजा ने मेरे ऊपर सवारी करते समय मुझे एक कोड़ा मार दिया, जिसके कारण तू काना हो गया।*</p><p><br /></p><p>यह बात सुनकर बच्चे को राजा पर गुस्सा आया और मां से बोला: *"मां मैं इसका बदला लूंगा।"*</p><p><br /></p><p>मां ने कहा *"राजा ने हमारा पालन-पोषण किया है, तू जो स्वस्थ है....सुन्दर है, उसी के पोषण से तो है, यदि राजा को एक बार गुस्सा आ गया तो इसका अर्थ यह नहीं है कि हम उसे क्षति पहुचाये"*</p><p><br /></p><p>पर उस बच्चे के समझ में कुछ नहीं आया, उसने मन ही मन राजा से बदला लेने की सोच ली।</p><p><br /></p><p>एक दिन यह मौका घोड़े को मिल गया राजा उसे युद्व पर ले गया । युद्व लड़ते-लड़ते राजा एक जगह घायल हो गया, घोड़ा उसे तुरन्त उठाकर वापस महल ले आया।</p><p><br /></p><p>इस पर घोड़े को ताज्जुब हुआ और मां से पूछा: *"मां आज राजा से बदला लेने का अच्छा मौका था, पर युद्व के मैदान में बदला लेने का ख्याल ही नहीं आया और न ही ले पाया, मन ने गवारा नहीं किया...."* </p><p><br /></p><p>इस पर घोडी हंस कर बोली: *"बेटा तेरे खून में और तेरे संस्कार में धोखा देना है ही नहीं, तू जानकर तो धोखा दे ही नहीं सकता है।"*</p><p><br /></p><p>*"तुझ से नमक हरामी हो नहीं सकती, क्योंकि तेरी नस्ल में तेरी मां का ही तो अंश है।"*</p><p><br /></p><p>*यह सत्य है कि जैसे हमारे संस्कार होते है, वैसा ही हमारे मन का व्यवहार होता है, हमारे पारिवारिक-संस्कार अवचेतन मस्तिष्क में गहरे बैठ जाते हैं, माता-पिता जिस संस्कार के होते हैं, उनके बच्चे भी उसी संस्कारों को लेकर पैदा होते हैं</p><p>💐🙏❤️🌹👌</p>ASBAbalnews.blogsport.comhttp://www.blogger.com/profile/04877463731116222930noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6295157689257447875.post-15892573618121871262023-12-03T06:24:00.000-08:002023-12-03T06:24:07.026-08:00सुंदर व्यवहार <h1 style="text-align: left;"> *गुरु मंत्र*</h1><div><br /></div><h3 style="text-align: left;">प्रस्तुति - उषा रानी / राजेंद्र प्रसाद सिन्हा </h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">एक सभा में लगभग 30 वर्षीय एक युवक ने एक प्रश्न पूछा, "गुरु जी, जीवन में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण क्या है?"</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">गुरुजी मुस्कराए और फिर उस युवक से पूछा, "आप मुम्बई में जुहू चौपाटी पर चल रहे हैं और सामने से एक सुन्दर लडकी आ रही है, तो आप क्या करोगे?"</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">युवक ने कहा, "उस पर नजर जायेगी, उसे देखने लगेंगे।"</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">गुरु जी ने पूछा, "वह लडकी आगे बढ़ गयी, तो क्या पीछे मुडकर भी देखोगे?"</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">लडके ने कहा, "हाँ, अगर धर्मपत्नी साथ नहीं है तो।" (सभा में सभी हँस पड़े) </h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">गुरु जी ने फिर पूछा, "जरा यह बताओ वह सुन्दर चेहरा आपको कब तक याद रहेगा?"</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">युवक ने कहा, "5-10 मिनट तक, जब तक कोई दूसरा सुन्दर चेहरा सामने न आ जाए।"</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">गुरु जी ने उस युवक से कहा, " अब जरा कल्पना कीजिये... आप जयपुर से मुम्बई जा रहे हैं और मैंने आपको एक पुस्तकों का पैकेट देते हुए कहा कि मुम्बई में अमुक महानुभाव के यहाँ यह पैकेट पहुँचा देना।</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">आप पैकेट देने मुम्बई में उनके घर गए। उनका घर देखा तो आपको पता चला कि यह तो बड़े अमीर हैं। घर के बाहर गाडियाँ और चौकीदार खडे हैं।</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">आपने पैकेट की सूचना अन्दर भिजवाई, तो वह महानुभाव खुद बाहर आए। आप से पैकेट लिया। आप जाने लगे तो आपको आग्रह करके घर में ले गए। पास में बैठाकर गरम खाना खिलाया।</h3><p><br /></p><p>चलते समय आप से पूछा, "किसमें आए हो?"</p><p><br /></p><p>आपने कहा, "लोकल ट्रेन में।"</p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">उन्होंने ड्राइवर को बोलकर आपको गंतव्य तक पहुँचाने के लिए कहा और आप जैसे ही अपने स्थान पर पहुँचने वाले थे कि उन महानुभाव का फोन आया, "भैया, आप आराम से पहुँच गए.।"</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">अब आप बताइए कि आपको वह महानुभाव कब तक याद रहेंगे? "</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">युवक ने कहा, "गुरु जी! जिंदगी में मरते दम तक उस व्यक्ति को हम भूल नहीं सकते।"</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">गुरु जी ने युवक के माध्यम से सभा को सम्बोधित करते हुए कहा, "यह है जीवन की हकीकत। सुन्दर चेहरा थोड़े समय ही याद रहता है, पर सुन्दर व्यवहार जीवन भर याद रहता है।"</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">बस यही है जीवन का गुरु मंत्र... अपने चेहरे और शरीर की सुंदरता से ज़्यादा अपने व्यवहार की सुंदरता पर ध्यान दें... जीवन अपने लिए आनंददायक और दूसरों के लिए अविस्मरणीय प्रेरणादायक बन जाएगा...</h3><p><br /></p><p> ♾️</p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">*"असल में आदर अपने अंदर के प्रेम का सार है। जब आप प्रेम पूर्ण दशा में होते हैं, यदि उस समय आपका शत्रु भी आपके सामने आ जाये, आप उसे कुछ ऐसे ढंग से देखेंगे कि वह भी महसूस करेगा," बहुत अच्छे हम अभी भी मित्र हैं। "लौटते समय में वह शत्रु नहीं रहेगा, उसका दिल बदल जाएगा।"*</h3><div><br /></div><div><br /></div>ASBAbalnews.blogsport.comhttp://www.blogger.com/profile/04877463731116222930noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6295157689257447875.post-3199002761786353452023-12-02T05:38:00.000-08:002023-12-02T05:40:52.004-08:00शाहदरा ब्रांच के सतसंगियों के सूचनार्थ <h1 style="text-align: left;"> Ra DHA Sva Aa Mi</h1><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">Tomorrow, on 03rd December 2023, we are arranging a formal discussion meeting with shahdara Branch youth members.</h3><div><br /></div><h3 style="text-align: left;">Heartly request to all youths come in morning satsang and attend the meeting.</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">Meeting - Formal discussion with youth By Branch सेक्रेटरी</h3><div><br /></div><h3 style="text-align: left;">Premises - Shahdara Branch </h3><h1 style="text-align: left;">Timing - 09Am [After Satsang]</h1><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">Heartly Ra Dha Sva Aa Mi</h3><h3 style="text-align: left;">Branch Secretary</h3><h3 style="text-align: left;">Shahdara</h3><div><br /></div><div>🌹❤️🙏🙏🙏🙏🙏🌹❤️</div><div><br /></div>ASBAbalnews.blogsport.comhttp://www.blogger.com/profile/04877463731116222930noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6295157689257447875.post-84831693756013576392023-12-01T19:42:00.000-08:002023-12-01T19:51:29.501-08:00शाहदरा ब्रांच के सतसंगियों के सूचनार्थ <h1 style="text-align: left;"> _*रा धा स्व आ मी*_</h1><p> </p><h3 style="text-align: left;"> कल दिनांक 26 नवंबर 2023, DRSA,रीजनल सत्संग 2023 *हुजूर रा धा स्व आ मी दयाल* की असीम कृपा से सफलतापूर्वक संपन्न हुआ।</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;"> *महिला एसोसिएशन* को विशेष धन्यवाद एवं आभार जिन्होंने अद्भुत प्रबंधन के साथ अपना कार्य सफलतापूर्वक पूरा किया।</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;"> मैं *यूथ एसोसिएशन* का भी आभारी हूं जिन्होंने वॉलंटियर की व्यवस्था करने में मदद की और आखिरी तक रीजन को सहायता प्रदान की।</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;"> सांस्कृतिक को खूबसूरती से पेश करने, कार्यक्रम के प्रबंधन और दिल्ली क्षेत्र की सभी ब्रांचों के साथ अद्भुत समन्वय दिखाने के लिए *क्लचरल टीम* को भी बहुत बहुत धन्यवाद।</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;"> _*मैं हर उस वॉलंटियर का धन्यवाद करता हूं जिसने किसी भी प्रकार की सेवा कर इस DRSA, रीजनल सत्संग के कार्यक्रम को सफल बनाया*_</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;"> *हार्दिक रा धा स्व आ मी*</h3><div><br /></div><h1 style="text-align: left;"> *ब्रांच सेक्रेट्री*</h1><h3 style="text-align: left;"> *शाहदरा*</h3>ASBAbalnews.blogsport.comhttp://www.blogger.com/profile/04877463731116222930noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6295157689257447875.post-40808267490637114002023-11-29T02:42:00.000-08:002023-11-29T02:42:30.414-08:00भीष्म कृष्ण संवाद<p><br /></p><h3 style="text-align: left;">प्रस्तुति - उषा रानी / राजेंद्र प्रसाद सिन्हा </h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">भीष्म ने कहा , "कुछ पूछूँ केशव .... ? </h3><h3 style="text-align: left;">सम्भवतः धरा छोड़ने के पूर्व मेरे अनेक भ्रम समाप्त हो जाँय " .... !! </h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">कृष्ण बोले - कहिये न पितामह ....! </h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">एक बात बताओ प्रभु ! तुम तो ईश्वर हो न .... ? </h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">कृष्ण ने बीच में ही टोका , "नहीं पितामह ! मैं ईश्वर नहीं ... मैं तो आपका पौत्र हूँ पितामह ... ईश्वर नहीं ...." </h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">भीष्म उस घोर पीड़ा में भी ठठा के हँस पड़े .... ! बोले , " अपने जीवन का स्वयं कभी आकलन नहीं कर पाया</h3><h3 style="text-align: left;"> कृष्ण , सो नहीं जानता कि अच्छा रहा या बुरा , पर अब तो इस धरा से जा रहा हूँ कन्हैया , अब तो ठगना छोड़ दे रे .... !! " </h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">कृष्ण जाने क्यों भीष्म के पास सरक आये और उनका हाथ पकड़ कर .... " कहिये पितामह .... !" </h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">भीष्म बोले , "एक बात बताओ कन्हैया ! इस युद्ध में जो हुआ वो ठीक था क्या .... ?" </h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">"किसकी ओर से पितामह .... ? पांडवों की ओर से .... ?" </h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">" कौरवों के कृत्यों पर चर्चा का तोll अब कोई अर्थ ही नहीं कन्हैया ! पर क्या पांडवों की ओर से जो हुआ वो सही था .... ? आचार्य द्रोण का वध , दुर्योधन की जंघा के नीचे प्रहार , दुःशासन की छाती का चीरा जाना , जयद्रथ और द्रोणाचार्य के साथ हुआ छल , निहत्थे कर्ण का वध , सब ठीक था क्या .... ? यह सब उचित था क्या .... ?" </h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">इसका उत्तर मैं कैसे दे सकता हूँ पितामह .... ! </h3><h3 style="text-align: left;">इसका उत्तर तो उन्हें देना चाहिए जिन्होंने यह किया ..... !! </h3><h3 style="text-align: left;">उत्तर दें दुर्योधन, दुःशाशन का वध करने वाले भीम , उत्तर दें कर्ण और जयद्रथ का वध करने वाले अर्जुन .... !! </h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">मैं तो इस युद्ध में कहीं था ही नहीं पितामह .... !! </h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">"अभी भी छलना नहीं छोड़ोगे कृष्ण .... ? </h3><h3 style="text-align: left;">अरे विश्व भले कहता रहे कि महाभारत को अर्जुन और भीम ने जीता है , पर मैं जानता हूँ कन्हैया कि यह तुम्हारी और केवल तुम्हारी विजय है .... ! </h3><h3 style="text-align: left;">मैं तो उत्तर तुम्ही से पूछूंगा कृष्ण .... !" </h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">"तो सुनिए पितामह .... ! </h3><h3 style="text-align: left;">कुछ बुरा नहीं हुआ , कुछ अनैतिक नहीं हुआ .... ! </h3><h3 style="text-align: left;">वही हुआ जो हो होना चाहिए .... !" </h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">"यह तुम कह रहे हो केशव .... ? </h3><h3 style="text-align: left;">मर्यादा पुरुषोत्तम राम का अवतार कृष्ण कह रहा है..? यह छल तो किसी युग में हमारे सनातन संस्कारों का अंग नहीं रहा,फिर यह उचित कैसे गया..? " </h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">"इतिहास से शिक्षा ली जाती है पितामह,पर निर्णय वर्तमान की परिस्थितियों के आधार पर लेना पड़ता है..! </h3><p><br /></p><h4 style="text-align: left;">हर युग अपने तर्कों और अपनी आवश्यकता के आधार पर अपना नायक चुनता है..!! </h4><h3 style="text-align: left;">राम त्रेता युग के नायक थे , मेरे भाग में द्वापर आया था..! </h3><h3 style="text-align: left;">हम दोनों का निर्णय एक सा नहीं हो सकता पितामह..!!" </h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">" नहीं समझ पाया कृष्ण ! तनिक समझाओ तो..!" </h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">" राम और कृष्ण की परिस्थितियों में बहुत अंतर है पितामह..! </h3><h3 style="text-align: left;">राम के युग में खलनायक भी 'रावण'जैसा शिवभक्त होता था..!! </h3><h4 style="text-align: left;">तब रावण जैसी नकारात्मक शक्ति के परिवार में भी विभीषण,मंदोदरी,माल्यावान जैसे सन्त हुआ करते थे.. तब बाली जैसे खलनायक के परिवार में भी तारा जैसी विदुषी स्त्रियाँ और अंगद जैसे सज्जन पुत्र होते थे..! उस युग में खलनायक भी धर्म का ज्ञान रखता था..!! </h4><h3 style="text-align: left;">इसलिए राम ने उनके साथ कहीं छल नहीं किया..!किंतु मेरे युग के भाग में में कंस, जरासन्ध,दुर्योधन,दुःशासन,शकुनी,जयद्रथ जैसे घोर पापी आये हैं..!! उनकी समाप्ति के लिए हर छल उचित है पितामह..! पाप का अंत आवश्यक है पितामह,वह चाहे जिस विधि से हो..!!" </h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">"तो क्या तुम्हारे इन निर्णयों से गलत परम्पराएं नहीं प्रारम्भ होंगी केशव..? </h3><h4 style="text-align: left;">क्या भविष्य तुम्हारे इन छलों का अनुशरण नहीं करेगा..? </h4><h3 style="text-align: left;">और यदि करेगा तो क्या यह उचित होगा..??" </h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">" भविष्य तो इससे भी अधिक नकारात्मक आ रहा है पितामह..! </h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">कलियुग में तो इतने से भी काम नहीं चलेगा..! </h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">वहाँ मनुष्य को कृष्ण से भी अधिक कठोर होना होगा..नहीं तो धर्म समाप्त हो जाएगा..! </h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">जब क्रूर और अनैतिक शक्तियाँ सत्य एवं धर्म का समूल नाश करने के लिए आक्रमण कर रही हों,तो नैतिकता अर्थहीन हो जाती है पितामह..! </h3><h3 style="text-align: left;">तब महत्वपूर्ण होती है धर्म की विजय,केवल धर्म की विजय..! </h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">भविष्य को यह सीखना ही होगा पितामह..!!" </h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">"क्या धर्म का भी नाश हो सकता है केशव..? </h3><h3 style="text-align: left;">और यदि धर्म का नाश होना ही है,तो क्या मनुष्य इसे रोक सकता है..?" </h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">"सबकुछ ईश्वर के भरोसे छोड़ कर बैठना मूर्खता होती है पितामह..! </h3><p><br /></p><p>ईश्वर स्वयं कुछ नहीं करता..!केवल मार्ग दर्शन करता है </p><p>सब मनुष्य को ही स्वयं करना पड़ता है..! </p><p>आप मुझे भी ईश्वर कहते हैं न..! </p><p>तो बताइए न पितामह,मैंने स्वयं इस युद्घ में कुछ किया क्या..? </p><p>सब पांडवों को ही करना पड़ा न..? </p><p>यही प्रकृति का संविधान है..!</p><p><br /></p><p>युद्ध के प्रथम दिन यही तो कहा था मैंने अर्जुन से..!यही परम सत्य है..!!"</p><p><br /></p><p>भीष्म अब सन्तुष्ट लग रहे थे..उनकी आँखें धीरे-धीरे बन्द होने लगीं थी..!</p><p>उन्होंने कहा - चलो कृष्ण ! यह इस धरा पर अंतिम रात्रि है..कल सम्भवतः चले जाना हो..अपने इस अभागे भक्त पर कृपा करना कृष्ण..!"</p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">कृष्ण ने मन मे ही कुछ कहा और भीष्म को प्रणाम कर लौट चले,पर युद्धभूमि के उस डरावने अंधकार में भविष्य को जीवन का सबसे बड़ा सूत्र मिल चुका था..!</h3><p><br /></p><p>जब अनैतिक और क्रूर शक्तियाँ सत्य और धर्म का विनाश करने के लिए आ</p><p>क्रमण कर रही हों,तो नैतिकता का पाठ आत्मघाती होता है..!!</p><p>धर्मों रक्षति रक्षिती</p>ASBAbalnews.blogsport.comhttp://www.blogger.com/profile/04877463731116222930noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6295157689257447875.post-20281600397371618652023-11-14T20:25:00.000-08:002023-11-14T20:26:52.601-08:00जीवात्मा और परमात्मा का सम्बन्ध<h3 style="text-align: left;"> *_🌻 जीवात्मा और परमात्मा का सम्बन्ध 🌻*</h3><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">*_🌹 एकोऽहं द्वितीयो नाऽस्ति </h3><h3 style="text-align: left;"><br /></h3><p> _जब रावण की सेना को हरा कर- और सीता जी को लेकर श्री राम चन्द्र जी वापस अयोध्या पहुंचे - तो वहां उन सब के लौटने की ख़ुशी में एक बड़े भोज का आयोजन हुआ।</p><p> _वानर सेना के भी सभी लोग आमंत्रित थे- लेकिन बेचारे,सब ठहरे वानर ही न...?</p><p> _तो सुग्रीव जी ने उन सब को खूब समझाया- देखो- यहाँ हम मेहमान हैं, और अयोध्या के लोग हमारे मेजबान।</p><p> _तुम सब यहाँ खूब अच्छे से आचरण करना - हम वानर जाति वालों को लोग *शिष्टाचार विहीन* न समझें,इस बात का ध्यान रखना!</p><p> _वानर भी अपनी जाति का मान रखने के लिए तत्पर थे,किन्तु एक वानर आगे आया- और हाथ जोड़ कर श्री सुग्रीव से कहने लगा *"प्रभो - हम प्रयास तो करेंगे कि अपना आचार अच्छा रखें, किन्तु हम ठहरे बन्दर* कहीं भूल चूक भी हो सकती है- तो अयोध्या वासियों के आगे हमारी अच्छी छवि रहे- इसके लिए मैं प्रार्थना करता हूँ कि आप किसी को हमारा अगुवा बना दें!</p><p> _जो न सिर्फ हमें मार्गदर्शन देता रहे,बल्कि हमारे बैठने आदि का प्रबंध भी सुचारू रूप से चलाये, कि कही इसी चीज़ के लिए वानर आपस में लड़ने भिड़ने लगें तो हमारी छवि धूमिल नहीं होगी!"</p><p> _अब वानरों में सबसे ज्ञानी,व *श्री राम के सर्व प्रिय तो हनुमान ही माने जाते थे-* तो यह जिम्मेदारी भी उन पर आई!</p><p> _भोज के दिन श्री हनुमान जी सबके बैठने वगैरह का इंतज़ाम करते रहे, और सबको ठीक से बैठाने के बाद श्री राम के समीप पहुंचे, *तो श्री राम ने उन्हें बड़े प्रेम से कहा- कि तुम भी मेरे साथ ही बैठ कर भोजन करो।*</p><p> _अब हनुमान पशोपेश में आ गए, उनकी योजना में प्रभु के बराबर बैठना तो था ही नहीं!</p><p> _" वे तो अपने प्रभु के जीमने के बाद ही- प्रसाद के रूप में भोजन ग्रहण करने वाले थे!"</p><p> _न तो उनके लिए बैठने की जगह ही थी, और ना ही केले का पत्ता- तो हनुमान बेचारे पशोपेश में थे- *ना तो प्रभु की आज्ञा टाली जाए,ना उनके साथ खाया जाए!* प्रभु तो भक्त के मन की बात जानते हैं ना ?</p><p> _तो वे जान गए कि- मेरे हनुमान के लिए- केले का पत्ता भी नहीं है,और ना ही स्थान है।</p><p> _उन्होंने अपनी कृपा से अपने से लगता हनुमान के बैठने जितना स्थान बढ़ा दिया *(जिन्होंने इतने बड़े संसार की रचना की हो उन्होंने ज़रा से और स्थान की रचना कर दी )* लेकिन प्रभु ने एक और केले का पत्ता नहीं बनाया!</p><p><br /></p><p> _उन्होंने कहा *"हे मेरे प्रिय! अति प्रिय छोटे भाई!, या पुत्र की तरह प्रिय हनुमान!* तुम मेरे साथ मेरे ही केले के पत्ते में भोजन करो।</p><p> _क्योंकि भक्त और भगवान तो एक ही हैं- *एकोऽहं द्वितीयो नाऽस्ति* तो कोई हनुमान को भी पूजेगा , तो मुझे ही प्राप्त करेगा *(यही अद्वैत यानी एकेश्वरवाद है.)"*</p><p> _इस पर श्री हनुमान जी बोले - "हे प्रभु - आप मुझे कितने ही अपने बराबर बताएं,मैं कभी आप नहीं होऊँगा,ना तो कभी हो सकता हूँ - ना ही होने की अभिलाषा है! *,,,,, (यह है द्वैत,यानी जीव और ब्रह्म, भक्त और भगवान,के बीच की मर्यादा),,,,,* - मैं सदा सर्वदा से आपका सेवक हूँ,और रहूँगा-आपके चरणों में ही मेरा स्थान था - और रहेगा।</p><p> _*तो मैं तो आपकी थाल में से खा ही नहीं सकता!"*</p><p> _जब हनुमान जी ने प्रभु के साथ भोजन करने से इनकार कर दिया। *तब,श्री राम ने अपने सीधे हाथ की मध्यमा अंगुली से केले के पत्ते के मध्य में एक रेखा खींच दी - जिससे वह पत्ता एक भी रहा- और दो भी हो गया! एक भाग में प्रभु ने भोजन किया- और दूसरे अर्ध भाग में हनुमान को कराया। तो जीवात्मा और परमात्मा के ऐक्य और द्वैत- दोनों के चिन्ह के रूप में केले के पत्ते आज भी एक होते हुए भी दो हैं -और दो होते हुए भी एक है।*</p><p>_*"यानी द्वैत में अद्वैत "* यही सृष्टि की व्यवस्था है , जो ब्रह्म और जीव के संबंध- *यानी द्वैत में अद्वैत को दर्शाती है।* इसे समझ लिया- तो जीवन से उद्धार तय है! यहीं है *जीवात्मा एवं परमात्मा का सम्बन्ध।**</p><p><br /></p><p>🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹</p><p>🙏🙏</p>ASBAbalnews.blogsport.comhttp://www.blogger.com/profile/04877463731116222930noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6295157689257447875.post-71499084064815375652023-11-14T01:51:00.000-08:002023-11-14T01:51:36.933-08:00परम पूज्य हुज़ूर डा, लाल साहब जी<h1 style="text-align: left;"> पांच महत्वपूर्ण बातें</h1><p>-------------------------</p><h3 style="text-align: left;">प्रस्तुति - गुरुदास जी डेढ़गांव </h3><p><br /></p><p>_________________</p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">18 अगस्त 1979 को सुबह रीजनल एसोसिएशन के प्रेसीडेन्ट, सेक्रेटरी, और ब्रांच सतसंग के सेक्रेटरी को हुज़ूर ने फरमाया---</h3><p>_________________</p><p><br /></p><h1 style="text-align: left;">पहली बात---</h1><p>----------------</p><h3 style="text-align: left;">परम पूज्य हुज़ूर ने इस पर अधिक जोर दिया फरमाया कि मै ब्रांच सतसंगों के सेक्रेटरी को ज्यादा महत्वपूर्ण ब्यक्ति और उनको ब्रांच में सभा का प्रतिनिधि खयाल करता हूँ, </h3><h3 style="text-align: left;">इस वास्ते इस पद के मुतअल्लिक यह उनका पवित्र फर्ज है कि वह देखें कि ब्रांच के तमाम काम बहुत अच्छी तरह हो रहें हैं कि नहीं, </h3><h3 style="text-align: left;">ब्रांच सतसंग की समस्याएं चाहे वह सतसंगीयों के आपसी झगड़े की हो, सेहत की खराबी की हो या रा-धा-स्व-आ-मी मत के बारे में हो, </h3><h3 style="text-align: left;">खुद ही सुलझा लेनी चाहिए, दयालबाग को लिख कर नहीं भेजनी चाहिए, </h3><h3 style="text-align: left;">सेक्रेटरी को अपने ब्रांच सतसंग में ब्रांच के सतसंगीयों में खूब रलमिल कर उनकी समस्याओं को समझना चाहिए और उनका हल निकालना चाहिए।। </h3><p><br /></p><h1 style="text-align: left;">दूसरी बात---</h1><p>-----------------</p><h3 style="text-align: left;">फरमाया कि अब तक का अनुभव है कि उपदेश फार्म बहुत लापरवाही से अधूरे और घसीट कर भरे जाते हैं, </h3><p>जो पढने में भी नहीं आते हैं, </p><p>उपदेश सतसंगी की जिंदगी की एक महान बात है, </p><p>ऐसी महान बात की शुरुआत ऐसी लापरवाही से फार्म भरकर की जाती है, </p><p>तो कोई शख्स उसके बहुत अच्छे नतीजे की उम्मीद किस तरह कर सकता है, </p><p>सेक्रेटरी को चाहिए कि फार्म अपने समाने भरवायें और देखें कि तमाम पूछी गई बातें पूरी और सही भरी गई है और साफ व खुशखत लिखी गई है।। </p><p><br /></p><h1 style="text-align: left;">तीसरी बात----</h1><p>-------------------</p><h3 style="text-align: left;">सभी ब्रांच सेक्रेटरी साहिबान अपनी ब्रांच में शादी के लायक लडके व लडकियों की फेहरिस्त तैयार करें, </h3><p>और अपने रीजनल प्रेसीडेन्ट के पास भेजें, </p><p>जिससे कि प्रेसीडेन्ट के पास अपने अपने रीजन के ऐसे तमाम लडकों व लडकियों की पूरी जानकारी हो, </p><p>ताकि शादियों की बातचीत और तय करने में वह सहायता कर सकें, </p><p>सभी ब्रांच सेक्रेटरी को मशविरा दिया कि वह इस सिलसिले में अपनी पूरी कोशिश करें, </p><p>ताकि शादियों का एक बहुत अच्छा और अनुकरणीय उदाहरण स्थापित हो जाय।। </p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">चौथी बात----</h3><p>-----------------</p><p>ब्रांच सतसंग को सतसंग के इंडस्ट्रीयल प्रोग्राम को आगे बढाने में हिस्सा लेना चाहिए, </p><p>यह दयालबाग के बने हुए माल की बिक्री से और अपने क्षेत्र में नुमाइश करने से कीया जा सकता है।। </p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">पांचवीं बात----</h3><p>-------------------</p><h3 style="text-align: left;">फरमाया कि ब्रांच सतसंगों को 5 से 10 साल की उम्र के बच्चों के ग्रुप के लिए छोटे छोटे स्कूल जारी करने चाहिए, </h3><p>अगर यह मुमकिन ना हो तो सतसंगीयों को खुद ही बच्चों को पढाने का इन्तजाम करना चाहिए</p><p>बच्चों को सतसंग, दयालबाग और रा-धा-स्व-आ-मी क्यो कहते हैं, </p><p>आदि बातों की A B C के बारे में जानकारी देनी चाहिए।। </p><p><br /></p><h1 style="text-align: left;">🙏रा-धा-स्व-आ-मी</h1>ASBAbalnews.blogsport.comhttp://www.blogger.com/profile/04877463731116222930noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6295157689257447875.post-84111754366492390232023-11-13T05:01:00.000-08:002023-11-13T05:02:15.572-08:00बचन <h1 style="text-align: left;"> रा धा/ध: स्व आ मी</h1><p><br /></p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">- आज शाम सतसंग में पढ़ा गया बचन- कल से आगे:- (24-11-31 मंगल का तीसरा भाग)- जब तीसरा नम्बर आया तो सेक्रेटरी साहब ने कहा कि मेरा नम्बर सरका दिया गया है। सबसे अव्वल पण्डित चमूपति जी ने जो आर्य समाज के माननीय वक्ता हैं तक़रीर की। </h3><p> </p><h3 style="text-align: left;">फ़िर रेवरेण्ड़ ठाकुर दास साहब का लेक्चर हुआ उसके बाद प्रिंसिपल छबीलदास साहब ने व्याख्यान दिया। प्रिंसिपल साहब के सिवाय सबने यही कहा कि परमार्थ कौमी तरक्की के रास्ते में सददेराह नहीं है। उसके बाद मुझे बोलने की इजाजत दी गई। डाक्टर नौरंग साहब ने बतौर सदर (अध्यक्ष) के अव्वल हाजिरीन(उपस्थित जन) से मेरा तार्रुफ (परिचय) कराया। मेरी सहूलियत के लिये एक कुसी रख दी गई थी जिस पर बैठकर में आराम से बोल सका। हाजिरीन एकदम खामोश हो गये।</h3><div><br /></div><h3 style="text-align: left;">मैने सुगांधीर सामला कि आवल में आर्य समाज के उस फैज (लाभ) के लिये जो मुझे गुजिश्ता (पिछली) सदी के आखिर में अपनी तालिबद्दल्ली(विद्यार्थी ) के जमाने में समाज से मिला है जिक्र कर दूँ। चुनांचे मैंने ऐसा ही किया और इस फिकरें (वाक्य) पर बढ़े जोर से तालियां बजी। इससे जाहिर है कि अब समाजी भाई मेरी तरफ मोहब्बत की निगाह से देखने लगे हैं। उनको व नीज दूसरे सब मbतों के अनुयायियों को जेहननशीन (समझना) चाहिये कि सतसंग प्राणिमात्र के लिये रोम रखता है और सत्संग के साथ प्रेम रखने में सबका भला है।</h3><div><br /></div><h3 style="text-align: left;">मजहबी ध्यासात में तकरको बेशक रहे लेकिन दिलों में तफरका (भिन्नता ) सेवक रहे लेकिन दिलों तफ़रका नहीं होना चाहिये। खैर! निस्फ़ घंटा गुजर गया। मुझे अफसोस है कि बमुश्किल तमाम निस्फ़ मजमून अदा हो सका। साहबेसद्र ने अजराहे-नवाजिश(कृपा वंश) तस्वीर जारी रखने की इजाजत दे दी। मैंने मजबूरन आयन्दा पांच मिनट के अन्दर जैसे जैसे मजमून खत्म कर दिया।</h3><h3 style="text-align: left;">ऐसे जबरदस्त मजमून के लिये दो घंटे भी कम वक़्त था। चूंकि इस तक़रीर का अवाम(सामान्य जन) पर निहायत ही अच्छा असर पड़ा इसलिये इरादा है कि प्रेम प्रचारक में इसका खुलासा (Simply) तहरीर करूँ। साहबे सद्र ने मेरे बैठ जाने कर ऐसे तारीफ़ी कलमात(शब्द) जबान से निकाले कि मुझे बड़ी शर्म मालूम हुई क्योंकि यह मेरी जिन्दगी में पहला ही मौका था कि किसी ने बसरेआम(सार्वजनिक रूप से) मेरी ऐसी पुरजोश(उत्साह पूर्वक) तारीफ़ की हो।</h3><h3 style="text-align: left;">N यह महज रा धा/ध: स्व आ मी दयाल की दया है यह जब जैसा मुनासिब खयाल फ़रमाते हैं उसके लिये सभी सामान मुहय्या(एकत्रित )फरमा देते हैं। मेरे बाद मिस्टर जुत्शी जी, पण्डित विश्व बन्धु जी की तकरीरे हुई। दस बज गये और मैं चला आया। </h3><h1 style="text-align: left;"> 🙏🏻रा धा/ध: स्व आ मी!</h1><div><br /></div><h3 style="text-align: left;">रोजाना वाकिआत-परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज!*</h3>ASBAbalnews.blogsport.comhttp://www.blogger.com/profile/04877463731116222930noreply@blogger.com0